पुलिस की वर्दी निर्दोष नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिसकर्मियों की आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति राज बीर सिंह की अध्यक्षता में अनिमेष कुमार और अन्य तीन पुलिस अधिकारियों द्वारा दायर धारा 528, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के तहत दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में वादी ने शिकायत वाद संख्या 179/2022 में दिनांक 02.01.2024 को पारित समन आदेश समेत समस्त कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “पुलिस की वर्दी निर्दोष नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं है,” और यह भी माना कि आवेदक धारा 197 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकते।

पृष्ठभूमि

विपक्षी पक्ष संख्या-2, डॉ. रघवेंद्र अग्निहोत्री ने शिकायत दर्ज कराई थी कि 28.06.2022 को जब वे अपने स्टाफ सदस्यों—कुलदीप अग्निहोत्री, अशोक कुमार, विजय अग्रवाल और सौम्या दुबे के साथ कानपुर से लौट रहे थे, तब उनकी कार का एक सफेद वाहन से हल्का संपर्क हुआ। हालांकि मामला उसी समय सुलझा लिया गया था, परंतु रात में खुड़गंज के पास तीन वाहनों ने उनकी कार को रोका। आरोप लगाया गया कि उन वाहनों से उपनिरीक्षक अनिमेष कुमार, कांस्टेबल कुलदीप यादव, कांस्टेबल सुधीर, कांस्टेबल दुश्यंत समेत छह अन्य पुलिसकर्मी बाहर आए।

शिकायत के अनुसार, पुलिसकर्मियों ने शिकायतकर्ता और उनके साथियों को गाली दी, हवा में फायरिंग की, उन्हें जबरन अपनी गाड़ियों में खींचकर बैठाया, शिकायतकर्ता का मोबाइल फोन तोड़ दिया, सोने की चेन और ₹16,200 नकद लूट लिए। शिकायतकर्ता और उनके साथियों के साथ हाथ-पैर से मारपीट की गई और उन्हें करीब डेढ़ घंटे तक सरायमीरा पुलिस चौकी, कन्नौज में अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा गया। बाद में परिजनों के हस्तक्षेप पर उन्हें छोड़ा गया।

बाद में शिकायतकर्ता का धारा 200 दंप्रसं के तहत परीक्षण हुआ और गवाह कुलदीप अग्निहोत्री व अशोक कुमार का धारा 202 दंप्रसं के तहत परीक्षण हुआ। मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार, शिकायतकर्ता को छह चोटें, सौम्या दुबे को चार चोटें, और कुलदीप अग्निहोत्री व विजय अग्रवाल को तीन-तीन चोटें आई थीं। इन साक्ष्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने आवेदकों को भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 342 और 394 के तहत समन जारी किया।

आवेदकों की ओर से दलीलें

आवेदकों की ओर से अधिवक्ता विनय कुमार ने तर्क दिया कि वे सभी कन्नौज में विशेष अभियान समूह (S.O.G.) में तैनात पुलिसकर्मी थे और घटना के समय गश्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता की लापरवाह ड्राइविंग पर चेतावनी देने के कारण शिकायत दर्ज कराई गई। आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता, जो पेशे से डॉक्टर हैं, ने चोट के प्रमाण झूठे तरीके से तैयार कराए।

आवेदकों ने यह भी तर्क दिया कि वे अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन कर रहे थे, इसलिए धारा 197 दंप्रसं के तहत पूर्व स्वीकृति आवश्यक थी, जो प्राप्त नहीं हुई। अतः समस्त कार्यवाही रद्द की जानी चाहिए।

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राज्य सरकार की ओर से दलीलें

शासकीय अधिवक्ता (A.G.A.) ने आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि आवेदकों पर हमले, डकैती और अवैध हिरासत के स्पष्ट आरोप लगे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि इन कृत्यों का आवेदकों के सरकारी कार्यों से कोई संबंध नहीं था, अतः धारा 197 दंप्रसं के तहत पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं थी। शिकायत, मेडिकल रिपोर्ट्स और गवाहों के बयानों के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

कोर्ट का विश्लेषण

दोनों पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड की जांच के बाद, कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही रद्द करने और धारा 197 दंप्रसं की व्याख्या से संबंधित विधिक सिद्धांतों का उल्लेख किया। कोर्ट ने ‘ओम प्रकाश यादव बनाम निरंजन कुमार उपाध्याय एवं अन्य’ (2024 INSC 979) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि धारा 197 दंप्रसं के तहत संरक्षण केवल तभी मिलता है जब शिकायतित कृत्य का आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन से तार्किक संबंध हो।

कोर्ट ने कहा:

केवल इस आधार पर कि आवेदक पुलिस अधिकारी हैं, उन्हें कोई संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता। पुलिस की वर्दी निर्दोष नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं है।

कोर्ट ने पाया कि कोई ऐसा साक्ष्य नहीं था जो यह दर्शाता कि आवेदक घटना के समय कोई आधिकारिक ड्यूटी निभा रहे थे। गश्त का कोई सामान्य डायरी प्रविष्टि प्रस्तुत नहीं की गई। इसके अलावा, हमले, डकैती और अवैध हिरासत जैसे आरोपों का आधिकारिक कर्तव्यों से कोई तार्किक संबंध नहीं था।

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कोर्ट ने आगे कहा:

यह भी देखा गया कि शिकायतकर्ता और उनके साथियों पर किया गया हमला और डकैती का कृत्य आवेदकों के आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन से कोई उचित या तर्कसंगत संबंध नहीं रखता।

अतः कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि आवेदकों द्वारा किए गए कार्य उनके सरकारी कर्तव्यों के दायरे से बाहर थे, और इस कारण धारा 197 दंप्रसं के तहत पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं थी।

निर्णय

कोर्ट ने यह पाते हुए कि शिकायत, गवाहों के बयानों और चिकित्सीय साक्ष्यों के आधार पर आवेदकों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, कहा:

रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदकों के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता।

इसके साथ ही कोर्ट ने धारा 528 BNSS के तहत दाखिल आवेदन को खारिज कर दिया:

धारा 528 बी.एन.एस.एस. के तहत आवेदन इस प्रकार खारिज किया जाता है।

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