गुजरात में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करने के लिए गठित राज्य समिति की संरचना को चुनौती देते हुए गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति को आधार बनाते हुए समिति की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं।
यह याचिका सूरत निवासी अब्दुल वहाब सोपरिवाला द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें कहा गया है कि समिति की वर्तमान रचना न केवल राज्य की धार्मिक विविधता को नजरअंदाज करती है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धर्म आधारित भेदभाव पर रोक) और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का भी उल्लंघन करती है।
फरवरी माह में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने इस पांच सदस्यीय समिति की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य यूसीसी की आवश्यकता का मूल्यांकन करना और संभावित विधेयक का मसौदा तैयार करना है। हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि समिति में किसी भी अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के सदस्य को शामिल नहीं किया गया है, जिससे विचार-विमर्श की निष्पक्षता और समावेशिता पर सवाल उठते हैं।

यह मामला न्यायमूर्ति अनिरुद्ध पी. मये की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया था और अब इसकी अगली सुनवाई 5 मई को निर्धारित की गई है। राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी पेश होंगे, जबकि याचिकाकर्ता की ओर से वकील ज़मीर शेख अदालत में दलील देंगे।
याचिका में यह भी बताया गया है कि सोपरिवाला ने 16 मार्च को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मुद्दे को शांतिपूर्वक सुलझाने की कोशिश की थी, लेकिन जब कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, तो उन्होंने न्यायालय का रुख किया। उन्होंने अदालत से आग्रह किया है कि समिति का पुनर्गठन किया जाए और सभी प्रभावित समुदायों के जानकार प्रतिनिधियों को शामिल कर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को समावेशी बनाया जाए।
विवादित समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजन देसाई कर रही हैं। अन्य सदस्यों में सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सी एल मीणा, अधिवक्ता आर सी कोडेकर, पूर्व कुलपति डॉ. दक्षेश ठाकर और सामाजिक कार्यकर्ता गीता शॉफ शामिल हैं।