जनहित याचिकाएं जनकल्याण के लिए होती हैं, न कि कार्यपालिका या विधायिका की नीतियों को चुनौती देने के लिए: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने औद्योगिक हेम्प (Industrial Hemp) की खेती और उसके नियमन को लेकर निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस प्रकार के विषय कार्यपालिका और विधायिका की नीतिगत क्षेत्राधिकार में आते हैं और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने डब्ल्यूपीपीआईएल संख्या 9 ऑफ 2025 में यह फैसला सुनाया। न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका की सीमाएं स्पष्ट हैं और इनका उपयोग केवल वास्तविक सार्वजनिक हित के मामलों में ही किया जाना चाहिए, न कि निजी या नीतिगत उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिए।

याचिकाकर्ता डॉ. सचिन अशोक काले, जो इस मामले में स्वयं प्रस्तुत हुए, ने यह प्रार्थना की थी कि राज्य सरकार को औद्योगिक हेम्प की परिभाषा निर्धारित करने, इसके THC (टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल) स्तर के आधार पर लाइसेंस देने की व्यवस्था बनाने, और इसे औद्योगिक एवं औषधीय उपयोग हेतु वैध घोषित करने के निर्देश दिए जाएं। उन्होंने तर्क दिया कि औद्योगिक हेम्प आर्थिक, पर्यावरणीय और चिकित्सीय दृष्टि से लाभकारी है और इसके उपयोग से राज्य के नागरिकों विशेषकर किसानों को फायदा हो सकता है।

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डॉ. काले ने यह भी दावा किया कि उन्होंने राज्य सरकार को 22 फरवरी 2024 को इस विषय पर अभ्यावेदन दिया था, लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21, 29, 41, 47 और 48A का हवाला देते हुए कहा कि यह याचिका नागरिकों के स्वास्थ्य, पर्यावरण और सांस्कृतिक संरक्षण से संबंधित है।

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इसके अतिरिक्त, उन्होंने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की नीतियों, आयुष मंत्रालय और FSSAI की अधिसूचनाओं, लोकसभा में पूछे गए प्रश्नों तथा 1894 की इंडियन हैम्प ड्रग्स कमीशन रिपोर्ट का हवाला देते हुए औद्योगिक हेम्प के औचित्य को रेखांकित किया।

राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता श्री संघर्ष पांडेय ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह याचिका जनहित की आड़ में याचिकाकर्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से भांग की खेती की अनुमति प्राप्त करने का प्रयास मात्र है।

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न्यायालय ने कहा कि —

“जनहित याचिकाओं की पवित्रता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि न्यायालय यह सुनिश्चित करें कि याचिका के पीछे कोई निजी लाभ, स्वार्थ या गलत उद्देश्य न हो।”

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टेट ऑफ उत्तरांचल बनाम बलवंत सिंह चौफाल, अशोक कुमार पांडे बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल, होलिकाउ पिक्चर्स बनाम प्रेम चंद मिश्रा, और गुरपाल सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब में दिए गए निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि केवल वास्तविक और ईमानदार जनहित याचिकाओं को ही बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने राज्य में नशीले पदार्थों की बढ़ती समस्या की ओर संकेत करते हुए कहा:

“इस प्रकार की जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं दे सकता जिससे भविष्य में गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।”

अंत में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि NDPS अधिनियम के अंतर्गत भांग की खेती केवल वैज्ञानिक, औद्योगिक, औषधीय या बागवानी प्रयोजनों के लिए, और केवल सरकार की अनुमति से ही संभव है। ऐसे मामलों में नीति-निर्धारण का अधिकार कार्यपालिका का है, और न्यायालय इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

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अतः, न्यायालय ने कहा:

“हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यह कोई वास्तविक जनहित याचिका नहीं है, और अनुच्छेद 226 के अंतर्गत जनहित अधिकार-क्षेत्र को लागू करने का यह उपयुक्त मामला नहीं है।”

याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा जमा सुरक्षा राशि को जब्त करने का भी आदेश दिया।

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