पति को ‘केम्पा, निकम्मा’ कहना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है: ओड़िशा हाईकोर्ट

ओड़िशा हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि यदि पत्नी अपने शारीरिक रूप से अक्षम पति को “केम्पा” (लंगड़ा) और “निकम्मा” जैसे शब्दों से बार-बार अपमानित करती है, तो यह मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने इस आधार पर पति को तलाक दिए जाने के फैमिली कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत इसे वैध ठहराया।

यह फैसला न्यायमूर्ति बी.पी. राउत्रे और न्यायमूर्ति चित्तरणजन दाश की खंडपीठ ने MATA No. 264 of 2023 में 5 मई 2025 को सुनाया। यह अपील पुरी के फैमिली कोर्ट द्वारा 10 जुलाई 2023 को C.P. No. 123 of 2019 में दिए गए तलाक के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।

पृष्ठभूमि

पति और पत्नी का विवाह 1 जून 2016 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। पति ने 3 अप्रैल 2019 को फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि पत्नी ने उन्हें उनकी शारीरिक अक्षमता को लेकर बार-बार “केम्पा” और “निकम्मा” जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया, जिससे वैवाहिक जीवन असहनीय हो गया।

पत्नी पहले 15 सितंबर 2016 को पति का घर छोड़ गई थीं और 5 जनवरी 2017 को आपसी बातचीत के बाद लौटीं, लेकिन अंततः 25 मार्च 2018 को स्थायी रूप से घर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने पति और उनके परिजनों के खिलाफ धारा 498-A आईपीसी सहित अन्य धाराओं में आपराधिक मामला भी दर्ज कराया।

कार्यवाही और साक्ष्य

पति ने फैमिली कोर्ट में दो गवाह प्रस्तुत किए, जिनमें वह स्वयं (P.W.1) भी शामिल थे। पत्नी ने केवल जिरह की लेकिन अपने पक्ष में कोई साक्ष्य या गवाह पेश नहीं किया।

पति और उनके गवाह (P.W.2) दोनों ने यह बताया कि पत्नी ने लगातार पति की शारीरिक अक्षमता को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां कीं, जिन्हें पत्नी ने जिरह के दौरान खंडन नहीं किया।

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न्यायालय की विश्लेषणात्मक टिप्पणी

कोर्ट ने V. Bhagat v. D. Bhagat [(1994) 1 SCC 337] और Samar Ghosh v. Jaya Ghosh [(2007) 4 SCC 511] जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि मानसिक क्रूरता उस आचरण को कहा जाता है जिससे किसी व्यक्ति को इतनी मानसिक पीड़ा हो कि उसके लिए वैवाहिक संबंध बनाए रखना असंभव हो जाए।

कोर्ट ने कहा:

“पति की शारीरिक अक्षमता को लेकर पत्नी द्वारा ‘केम्पा’, ‘निकम्मा’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाना मानसिक पीड़ा देने वाला है। यह पत्नी की सोच और पति के प्रति सम्मान को दर्शाता है। […] ऐसे आचरण को मानसिक क्रूरता माना जाएगा और इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि पत्नी ने पति के साथ क्रूरता का व्यवहार किया।”

कोर्ट ने माना कि यह आचरण हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के अंतर्गत मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है और फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया तलाक का आदेश उचित है।

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स्थायी भरण-पोषण और स्त्रीधन का मुद्दा

पत्नी द्वारा स्थायी भरण-पोषण और स्त्रीधन की वापसी के लिए की गई मांग को लेकर हाईकोर्ट ने कहा कि इस पर विचार किया जा सकता है, लेकिन चूंकि पति-पत्नी की आय या संपत्ति से संबंधित कोई साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं है, इसलिए इस मुद्दे पर निर्णय नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा:

“स्थायी भरण-पोषण और स्त्रीधन से संबंधित दावे, हिंदू विवाह अधिनियम की धाराओं 25 और 27 के अंतर्गत फैमिली कोर्ट, पुरी में उठाए जा सकते हैं।”

अंतिम निर्णय

पत्नी की अपील खारिज कर दी गई और फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया तलाक का आदेश बरकरार रखा गया।

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