बच्चे को माता या पिता में से किसी के स्नेह से वंचित नहीं किया जा सकता: ओडिशा हाईकोर्ट ने पिता को दी मुलाक़ात की अनुमति

ओडिशा हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी बच्चे को उसके माता या पिता में से किसी के प्रेम और स्नेह से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने कटक की पारिवारिक अदालत का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक पिता को अपने दो वर्षीय बेटे से मिलने का अधिकार देने से इनकार किया गया था।

न्यायमूर्ति [नाम उल्लेख नहीं] की पीठ ने कहा कि भले ही बच्चे की अभिरक्षा एक अभिभावक के पास हो, दूसरे को उससे मिलने का उचित अवसर मिलना चाहिए। अदालत ने कहा,

“जो पिता अपने बेटे से मिलने के लिए लगातार अदालतों का रुख कर रहा है, उसे उसके या उसकी माँ के लिए खतरा नहीं माना जा सकता।”

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याचिकाकर्ता पिता और माँ की शादी अप्रैल 2021 में हुई थी और दिसंबर 2023 में बेटे का जन्म हुआ। दंपति के अलग होने के बाद बच्चा माँ के पास रह रहा है। पिता ने अपने बेटे से मिलने की अनुमति के लिए पारिवारिक अदालत में आवेदन किया था, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि ऐसी मुलाक़ात माँ और बच्चे के लिए “खतरा” साबित हो सकती है।

इसके बाद पिता ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दाख़िल की।

हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के तर्क को “विकृत और स्थापित कानून के विपरीत” बताया। अदालत ने कहा कि माँ द्वारा बताए गए घटनाक्रम लगभग दो वर्ष पुराने हैं और यह साबित करने के लिए कोई नया साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया कि पिता से कोई वास्तविक खतरा है।

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अदालत ने कहा,

“जो पिता अपने बच्चे से मिलने के लिए वैधानिक उपाय अपना रहा है, न कि अवैध तरीकों का सहारा ले रहा है, उसे अपने बेटे या पत्नी के लिए खतरा नहीं माना जा सकता।”

पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के 2020 के यशिता साहू बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान मामले का हवाला दिया और कहा कि “अभिरक्षा संबंधी विवादों में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि होना चाहिए।”

हाईकोर्ट ने पिता की याचिका स्वीकार करते हुए उसे हर महीने दो बार हाईकोर्ट मध्यस्थता केंद्र, कटक में पर्यवेक्षित मुलाक़ात (supervised visitation) की अनुमति दी। पिता और बच्चे के दादा-दादी को दो घंटे तक मुलाक़ात की अनुमति दी गई है। साथ ही, उन्हें हर दूसरे सप्ताहांत पर वीडियो कॉल के माध्यम से बच्चे से बात करने की अनुमति दी गई है।

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अदालत ने कहा,

“अभिरक्षा विवाद में कोई एक तय फार्मूला लागू नहीं किया जा सकता। भारतीय समाज में दादा-दादी बच्चों के पालन-पोषण में अहम भूमिका निभाते हैं, और उनके स्नेह व योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने दादा-दादी को “परिवार का अभिन्न हिस्सा” बताते हुए प्रत्येक मुलाक़ात के लिए यात्रा व्यय के रूप में ₹2,000 भुगतान करने का निर्देश दिया।

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