इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA) के एक सदस्य द्वारा की गई सुनवाई और आदेश को अवैध नही माना जा सकता है।
अध्यक्ष के गैर हाजरी में दो सदस्य भी शिकायत की सुनवाई कर सकते है। अगर सिंगल मेम्बर के शिकायत सुनने पर कंपनी इसकी अधिकारिता पर आपत्ति न जताते हुए शांत रहती है तो बाद में सदस्य के आदेश को अधिकारिता के आधार पर चैलेंज नही किया जा सकता है।
धारा 21,29 और 30 के आधार पर कोर्ट ने कहा कि रेरा में एक सदस्य द्वारा भी सुनवाई कर निर्णय दिया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि रेरा एक्ट के गठन पीड़ित को तुरंत राहत प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया है। ऐसे में प्रमोटर सिविल कोर्ट के माध्यम से वसुली की कार्यवाही करने की बात नही कह सकता है। ऐसा होने पर रेरा के गठन का मकसद ही विफल हो जाएगा।
इसलिए बकाए की वसूली राजस्व प्रक्रिया के जरिए से करने का आदेश उचित है।कोर्ट के न्यायाधीश एमएन भंडारी और न्यायमूर्ति आरआर अग्रवाल की खंडपीठ ने मेसर्स प्राविड रियल इस्टेट प्रा लि एंव मेसर्स एमआर जेवी कंस्ट्रक्शन कंपनी की दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, बकाया वसूली के अलावा अन्य मामले में रेरा के आदेश के खिलाफ अपील का उपबंध है। याची अपील दाखिल कर सकता है।
याची कंपनी ने वर्ष 2012 में फ्लैट बुक करते वक्त इसका कब्जा 2017 में सौपने का करार किया था। करार पूर्ण न होने पर रेरा ने कंपनी से मूलधन 25 लाख 36 हजार 985 रुपए की वसूली का आदेश दिया। जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।