राजस्थान हाईकोर्ट ने अदालती आदेश की पांच साल में भी पालना नहीं करने पर नाराजगी जताई है। इसके साथ ही अदालत ने गृह सचिव को एक जून को पेश होकर इस संबंध में स्पष्टीकरण देने को कहा है। अदालत ने गृह सचिव से पूछा है कि पांच साल पहले दिए आदेश की अब तक पालना क्यों नहीं की गई है। वहीं अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि यदि आदेश की पालना कर ली जाती है तो सचिव को पेश होने की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस महेन्द्र कुमार गोयल की एकलपीठ ने यह आदेश सुरेन्द्र सिंह चौहान की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से आदेश की पालना के लिए समय मांगा गया। इस पर अदालत ने कहा कि अदालती आदेश को पांच साल हो चुके हैं। ऐसे में अब तक आदेश की पालना क्यों नहीं की गई। याचिका में अधिवक्ता रामप्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता पूर्व में कांस्टेबल के पद पर तैनात था। इस दौरान उसका शिक्षक पद पर चयन हो गया। ऐसे में उसने शिक्षक पद का कार्यभार ग्रहण करने के लिए पुलिस विभाग से रिलीव होना चाहा, लेकिन विभाग ने उसे रिलीव नहीं किया और उस पर प्रशिक्षण और वेतन के तौर पर खर्च दो लाख 85 हजार रुपये जमा कराने को कहा। याचिकाकर्ता की ओर से यह राशि जमा कराने के बाद ही विभाग ने उसे रिलीव किया।
याचिका में कहा गया कि विभाग की इस वसूली कार्रवाई को उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने 8 जनवरी, 2018 को आदेश जारी कर विभाग को यह राशि याचिकाकर्ता को लौटाने के आदेश दिए थे। याचिका में कहा गया कि पांच साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी अब तक उसे विभाग ने यह राशि नहीं लौटाई है। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने आदेश की पालना नहीं होने पर गृह सचिव को हाजिर होकर अपना जवाब देने को कहा है।