एक महत्वपूर्ण फैसले में, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (बलात्कार) और 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत अपराध नहीं है। न्यायालय ने गोरखनाथ शर्मा की दोषसिद्धि को खारिज कर दिया, जिसे कथित तौर पर अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए निचली अदालत ने 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 11 दिसंबर, 2017 को हुई एक घटना के इर्द-गिर्द घूमता है, जब आरोपी गोरखनाथ शर्मा ने कथित तौर पर अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप उसे गंभीर चोटें आईं। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता के मलाशय में छेद हो गया था और उसे महारानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ उसका मृत्युपूर्व बयान दर्ज किया गया था। उसी दिन उसकी मृत्यु हो गई। पुलिस ने धारा 377, 376 (बलात्कार) और 304 (गैर इरादतन हत्या) आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया, जिसके कारण सत्र परीक्षण संख्या 32/2018 में बस्तर, जगदलपुर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एफटीसी) ने शर्मा को दोषी ठहराया।
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हाईकोर्ट के समक्ष कानूनी मुद्दे
क्या धारा 376 और 377 आईपीसी तब लागू होती है जब आरोपी और पीड़ित कानूनी रूप से विवाहित पति-पत्नी हों?
क्या पति और पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध, भले ही सहमति के बिना, आईपीसी के तहत अपराध है?
क्या कथित कृत्य और पीड़ित की मौत के बीच स्पष्ट कारण-कार्य संबंध के अभाव में धारा 304 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि उचित थी?
न्यायालय की टिप्पणियां
इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने की, जिन्होंने मृत्यु पूर्व बयान, मेडिकल रिपोर्ट और अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही की जांच की। न्यायालय ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि वयस्कों के बीच सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध नहीं है। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि यह फैसला सीधे वैवाहिक संबंधों पर लागू नहीं होता है, जहां कानून बलात्कार के अपराध के लिए अपवाद प्रदान करता है।
आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) पर:
न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 375 आईपीसी के अपवाद के तहत, किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना, जब तक कि वह 15 वर्ष से कम उम्र की न हो, बलात्कार नहीं माना जाता है। चूंकि अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने अपनी पत्नी के साथ जबरन संभोग किया, इसलिए न्यायालय ने माना कि अपवाद लागू होता है, जिससे धारा 376 आईपीसी के तहत आरोप अस्थिर हो जाता है।
आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) पर:
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 377 “प्रकृति के आदेश के विरुद्ध” शारीरिक संभोग को अपराध बनाती है, लेकिन वैवाहिक संबंध के भीतर अप्राकृतिक अपराधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करती है। फैसले में कहा गया कि “अगर बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक यौन क्रियाएं शामिल नहीं हैं, तो विवाह के भीतर अप्राकृतिक संभोग को भी धारा 377 आईपीसी के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।” अदालत ने फैसला सुनाया कि पति और पत्नी से जुड़े मामलों में धारा 375 और 377 आईपीसी के बीच कानूनी असंगति (“प्रतिकूलता”) थी, और इस प्रकार, आरोपी को धारा 377 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
आईपीसी की धारा 304 (हत्या के बराबर नहीं होने वाली गैर इरादतन हत्या) पर:
हाई कोर्ट को पीड़िता की मौत से आरोपी के कार्यों को जोड़ने वाला कोई प्रत्यक्ष चिकित्सा साक्ष्य नहीं मिला। अदालत ने मृत्यु पूर्व बयान में विसंगतियों की ओर भी इशारा किया, क्योंकि इसे दर्ज करने वाले मजिस्ट्रेट ने यह उल्लेख करने में विफल रहे कि पीड़िता ने स्पष्ट रूप से अपने पति को दोषी ठहराया था। इसे देखते हुए, अदालत ने फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी के कार्यों के कारण पीड़िता की मौत हुई।
निर्णय और बरी
अपने अंतिम निर्णय में, हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि को खारिज करते हुए कहा:
“जब पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार की परिभाषा से बाहर है, तो बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध भी धारा 377 आईपीसी के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।”
अदालत ने यह भी पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी के कार्यों के कारण सीधे तौर पर पीड़िता की मौत हुई, जिससे धारा 304 आईपीसी के तहत उसकी दोषसिद्धि अस्थिर हो गई।
तदनुसार, हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली, गोरखनाथ शर्मा को दोषमुक्त कर दिया और जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।