पति-पत्नी के बीच बिना सहमति के संबंध बनाना बलात्कार नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मोहम्मद फरीद अली को बरी कर दिया, जिसे बलात्कार के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया गया था और सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। न्यायमूर्ति मालाश्री नंदी की अध्यक्षता वाली अदालत ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी ने बलात्कार का अपराध किया था।

मामले की पृष्ठभूमि

मोहम्मद फरीद अली बनाम असम राज्य एवं अन्य (Crl.A./372/2023) मामला अगस्त 2014 में हुई एक घटना से उपजा था। पीड़िता, जो मुखबिर की बेटी थी, 2 अगस्त 2014 को डिफू बाजार से लापता हो गई थी। एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अपीलकर्ता ने पीड़िता का अपहरण किया था। जांच के बाद, फरीद अली पर धारा 366, 342 और 376 आईपीसी के तहत आरोप लगाए गए और मामला कार्बी आंगलोंग, डिफू में सहायक सत्र न्यायालय के समक्ष लाया गया।*

फरीद अली को 10 अगस्त, 2023 को कार्बी आंगलोंग के विद्वान सहायक सत्र न्यायाधीश द्वारा दोषी ठहराए जाने के साथ मुकदमा समाप्त हो गया। उसे सात साल के कठोर कारावास और ₹5,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई, जिसे न चुकाने पर उसे एक महीने की अतिरिक्त कैद की सजा भुगतनी होगी।

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मुख्य कानूनी मुद्दे

अदालत के समक्ष प्राथमिक कानूनी प्रश्न यह था कि क्या पीड़िता ने यौन संबंध के लिए सहमति दी थी और क्या धारा 376 आईपीसी के तहत बलात्कार का आरोप कायम रह सकता है। मामला दो महत्वपूर्ण मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता है:

1. पीड़िता की सहमति: अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि पीड़िता, जो उस समय बालिग थी, स्वेच्छा से उसके साथ भाग गई थी और उनका रिश्ता सहमति से था। बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि मुस्लिम रीति-रिवाजों के तहत अपनी शादी के बाद दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे।

2. बलात्कार की कानूनी परिभाषा: न्यायालय को यह निर्धारित करने का कार्य सौंपा गया था कि अपीलकर्ता और पीड़िता के बीच यौन संबंध, भले ही बलपूर्वक किया गया हो, बलात्कार माना जाएगा या नहीं, क्योंकि उनकी वैवाहिक स्थिति और पति-पत्नी के बीच गैर-सहमति वाले यौन संबंध के लिए धारा 375 के तहत कानूनी छूट प्रदान की गई है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय

न्यायमूर्ति मालाश्री नंदी ने अपने निर्णय में कई मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दिया:

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– पीड़िता ने अपने बयान में स्वीकार किया कि वह अपीलकर्ता का फोन आने के बाद अपनी मर्जी से उसके साथ भाग गई थी। वह अपनी मर्जी से उसके साथ जगीरोड गई थी, जहाँ वे एक महीने से अधिक समय तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे।

– जबकि पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसकी जबरन शादी की गई और उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ यौन संबंध बनाए गए, न्यायालय ने पाया कि उसने अपीलकर्ता के साथ रहने के दौरान कोई अलार्म नहीं बजाया या अपने माता-पिता या अधिकारियों से संवाद नहीं किया। उसके पास मामले की रिपोर्ट करने का अवसर था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।

– महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने धारा 375 आईपीसी के तहत छूट का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि यदि पत्नी 15 वर्ष से अधिक आयु की है तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के संभोग करना बलात्कार नहीं माना जाता है। पीड़िता 18 वर्ष से अधिक आयु की होने के कारण अपीलकर्ता के साथ भाग गई थी और उसके साथ उसकी पत्नी के रूप में रह रही थी।

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न्यायमूर्ति नंदी ने आगे टिप्पणी की, “पीड़िता, वयस्क होने के कारण स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर अपीलकर्ता से विवाह कर लिया। उनके बीच संबंध, हालांकि बलपूर्वक थे, लेकिन कानूनी ढांचे के तहत बलात्कार नहीं माना जा सकता, क्योंकि वे पति-पत्नी हैं।” न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अपीलकर्ता ने बलात्कार का अपराध किया था।

इन निष्कर्षों के आधार पर, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए अपील को अनुमति दे दी। हिरासत में लिए गए मोहम्मद फरीद अली को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया, बशर्ते कि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि निचली अदालत के रिकॉर्ड वापस किए जाएं।

मोहम्मद फरीद अली का प्रतिनिधित्व श्री ए.एन. अहमद ने किया, जबकि असम राज्य का प्रतिनिधित्व विद्वान अतिरिक्त लोक अभियोजक श्री बी. शर्मा ने किया।

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