तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट किया है कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत पर रिहाई के बाद उनकी कैबिनेट में दोबारा नियुक्ति किसी भी प्रकार से जमानत की शर्तों का उल्लंघन नहीं करती। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के नेता बालाजी ने तर्क दिया कि जनादेश से प्राप्त राजनीतिक पद पर बने रहना उनका अधिकार है और इसे अनुचित रूप से रोका नहीं जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर 2024 को बालाजी को 15 महीने से अधिक जेल में रहने के बाद जमानत दी थी। इसके तीन दिन बाद 29 सितंबर 2024 को राज्यपाल आर. एन. रवि ने उन्हें फिर से मंत्री पद की शपथ दिलाई, जिससे कानूनी और राजनीतिक हलकों में सवाल उठने लगे, विशेष रूप से 2011 से 2015 तक परिवहन मंत्री रहते हुए कथित ‘नौकरी के बदले नकद’ घोटाले में गवाहों पर संभावित प्रभाव को लेकर।
अपने बचाव में बालाजी ने कहा कि उनकी जमानत रद्द करने की याचिका असल में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित है, न कि किसी वास्तविक कानूनी आधार पर। उन्होंने कहा कि उनकी मंत्री नियुक्ति जमानत आदेश की शर्तों के अनुरूप है और संविधान तथा कानून की भावना के खिलाफ नहीं है।

हलफनामे में कहा गया, “उत्तरदाता संख्या 2 (बालाजी) की मंत्री के रूप में नियुक्ति न तो जमानत की शर्तों के विरुद्ध थी और न ही किसी कानून का उल्लंघन।” बालाजी ने यह भी तर्क दिया कि सार्वजनिक जीवन में भाग लेने का उनका अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है, जो व्यक्ति को गरिमा के साथ जीवन जीने की गारंटी देता है।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से लगाए गए इस आरोप का भी खंडन किया गया कि बालाजी का मंत्री पद पर बने रहना मुकदमे की प्रक्रिया में बाधा बन सकता है या गवाहों को प्रभावित कर सकता है। हलफनामे में कहा गया, “ऐसा कोई भी आधार नहीं है जिससे यह साबित हो कि उत्तरदाता संख्या 2 ED के मुकदमे में देरी कर रहे हैं या किसी भी गवाह को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।”
सुप्रीम कोर्ट अब उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें गवाहों की स्वतंत्रता पर चिंता व्यक्त की गई है, खासकर जमानत के कुछ ही दिनों बाद बालाजी की पुनः नियुक्ति को लेकर। अदालत ने अपनी जमानत मंजूरी में यह भी कहा था कि मुकदमा शीघ्र पूरा होने की कोई संभावना नहीं है, और यह प्रक्रिया लंबी चलने की आशंका है।
बालाजी का राजनीतिक कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है। ED की चार्जशीट के अनुसार, 2018 में दर्ज FIR के आधार पर उन पर परिवहन विभाग की भर्ती प्रक्रिया को “भ्रष्टाचार का गढ़” बना देने का आरोप है। हालांकि बालाजी का कहना है कि यदि किसी गवाह को खतरे का अहसास होता है तो वह राज्य की गवाह संरक्षण योजना के तहत सुरक्षा मांग सकता है।