सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नितीश कटारा हत्याकांड में दोषी सुखदेव यादव उर्फ पहलवान की हिरासत को लेकर दिल्ली सरकार के रुख पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि 20 साल की सजा बिना किसी रियायत के पूरी करने के बावजूद यदि किसी को रिहा नहीं किया जा रहा है, तो यह व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक डवे की उस दलील पर आश्चर्य व्यक्त किया जिसमें उन्होंने कहा कि सजा पूरी होने के बाद भी स्वतः रिहाई संभव नहीं है। पीठ ने कहा, “हम एक व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहे हैं। अगर उसे कानूनी रूप से निर्धारित अवधि से अधिक हिरासत में रखा गया है, तो वह अवैध हिरासत होगी।”
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मृदुल, जो सुखदेव यादव की ओर से पेश हुए, ने बताया कि उनके मुवक्किल ने 9 मार्च 2025 तक पूरी 20 साल की सजा पूरी कर ली है। उन्होंने दिल्ली सरकार की उस व्याख्या को चुनौती दी जिसके तहत 20 साल की सजा पूरी होने के बाद स्वतः रिहाई को मान्यता नहीं दी गई है।

वहीं, डवे ने दलील दी कि आजीवन कारावास का अर्थ जीवन भर की सजा होता है और केवल 20 साल पूरे होने पर स्वतः रिहाई का दावा नहीं किया जा सकता।
सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि यादव ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल विशेष अनुमति याचिका (SLP) में अपनी रिहाई के लिए सीधे तौर पर कोई प्रार्थना नहीं की थी, बल्कि उन्होंने फरलो (अस्थायी रिहाई) की मांग की थी। इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई कि याचिका में रिहाई की मांग नहीं की गई है, अतः कोर्ट इस मुद्दे पर विचार नहीं कर सकता।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूर्व दिए अपने आदेशों में इस मुद्दे पर विचार करने की बात कही थी। अंततः अदालत ने सुखदेव यादव को अपनी याचिका में संशोधन कर रिहाई की मांग स्पष्ट रूप से दर्ज करने की अनुमति दी और मामले की अगली सुनवाई 7 मई के लिए निर्धारित कर दी।