एक महत्वपूर्ण कानूनी घटनाक्रम में, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश निर्मल यादव को 2008 के बहुचर्चित भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने बरी कर दिया है। यह फैसला शनिवार दोपहर चंडीगढ़ में विशेष सीबीआई न्यायाधीश अल्का मलिक ने सुनाया।
यह मामला उस समय सुर्खियों में आया था जब पहली बार किसी कार्यरत न्यायाधीश का नाम भ्रष्टाचार के मामले में सामने आया। मामला तब शुरू हुआ जब ₹15 लाख से भरा एक लिफाफा हाई कोर्ट की तत्कालीन न्यायाधीश निर्मलजीत कौर के आवास पर पहुंचा। जांच में सामने आया कि यह राशि कथित तौर पर न्यायाधीश निर्मल यादव को 2007 के एक संपत्ति विवाद में अनुकूल फैसला देने के एवज में दी जा रही थी। इस विवाद में हरियाणा के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, प्रॉपर्टी डीलर राजीव गुप्ता और दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह भसीन शामिल थे।
घटना के बाद न्यायाधीश निर्मल यादव ने छुट्टी ले ली और बाद में उनका तबादला उत्तराखंड हाई कोर्ट कर दिया गया। मामले की जांच पहले स्थानीय पुलिस कर रही थी, लेकिन बाद में यह सीबीआई को सौंप दी गई। सीबीआई ने शुरू में न्यायाधीश निर्मलजीत कौर को किसी भी संलिप्तता से मुक्त कर दिया था। हालांकि, 2009 में सीबीआई द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बावजूद, सीबीआई अदालत ने आगे जांच के आदेश दिए। इसके बाद मार्च 2011 में न्यायाधीश यादव के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया।

करीब 17 वर्षों तक चले इस मामले में कई मोड़ आए। इस दौरान चार गवाहों की मृत्यु हो गई, जबकि 69 अभियोजन गवाहों में से 13 मुकर गए, जिनमें कुछ प्रमुख और करीबी लोग भी शामिल थे। इनमें न्यायाधीश यादव के निजी सुरक्षा अधिकारी और संजीव बंसल के रिश्तेदार भी शामिल थे। संजीव बंसल की मुकदमे के दौरान ब्रेन ट्यूमर से मृत्यु हो गई।
300 से अधिक सुनवाइयों और कई वर्षों की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद न्यायाधीश निर्मल यादव की बरी होना इस हाई-प्रोफाइल मामले का अंत है। यह फैसला एक ओर जहां राहत देता है, वहीं यह जांच की प्रारंभिक प्रक्रिया और उच्च पदों पर आसीन लोगों के विरुद्ध मुकदमे चलाने की जटिलताओं पर भी सवाल खड़े करता है।