इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरफेसी अधिनियम, 2002 के तहत नीलामी में संपत्ति खरीदने वाले व्यक्ति को नया बिजली कनेक्शन लेने से पहले पिछले मालिक के बकाया बिजली बिलों का भुगतान करना होगा। न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने एक रिट याचिका का निस्तारण करते हुए बिजली आपूर्ति कंपनी की इस दलील को सही माना कि बकाया राशि का भार संपत्ति पर ही होता है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता आमिर अहमद ने एक संपत्ति खरीदने के बाद नया बिजली कनेक्शन न मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। यह संपत्ति उन्होंने एक बैंक के अधिकृत अधिकारी से खरीदी थी, जो सरफेसी अधिनियम, 2002 की धारा 13 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहे थे।
याचिकाकर्ता के पास 24 अप्रैल, 2024 का एक बिक्री प्रमाण पत्र था, जिसमें कहा गया था कि संपत्ति उन्हें “सभी भारों से मुक्त” बेची गई थी। लेकिन जब उन्होंने बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन किया, तो आपूर्ति कंपनी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उस परिसर पर बिजली का बिल बकाया है।

दोनों पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील, श्री मेराज अहमद खान ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने सद्भावनापूर्वक संपत्ति खरीदी थी। उन्होंने दलील दी कि विक्रेता, यानी बैंक के अधिकृत अधिकारी, ने किसी भी बिजली का उपभोग नहीं किया था, इसलिए किसी भी बकाया का दावा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि संपत्ति को सभी ज्ञात भारों से मुक्त बताकर बेचा गया था और सुप्रीम कोर्ट का के.सी. निनन बनाम केरल राज्य विद्युत बोर्ड का फैसला उनके मामले पर लागू नहीं होता।
इसके जवाब में, बिजली आपूर्ति कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता श्री प्रांजल मेहरोत्रा ने यू.पी. विद्युत आपूर्ति संहिता, 2005 के खंड 4.3(f)(i) और (viii) का हवाला दिया। उन्होंने प्रावधान को उद्धृत करते हुए कहा, “विक्रेता और क्रेता का यह कर्तव्य होगा कि वे बिक्री की तारीख तक के बकाया बिजली बिलों का पता लगाएं, और आगे यह कि विक्रेता और क्रेता दोनों, संयुक्त रूप से या अलग-अलग, बकाया बिजली बिलों का भुगतान करने / ‘नो ड्यूज’ प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए उत्तरदायी होंगे।” संहिता में यह भी कहा गया है कि बकाया राशि का भुगतान होने पर ही नए कनेक्शन के आवेदन पर कार्रवाई की जाएगी।
श्री मेहरोत्रा ने के.सी. निनन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि बिजली कंपनियाँ पिछले बकाये की वसूली के लिए संपत्ति पर चार्ज बना सकती हैं, क्योंकि यह एक सार्वजनिक हित में और कंपनियों के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
हाईकोर्ट ने “आपूर्ति कंपनी की दलील में दम पाया।” न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि याचिकाकर्ता एक ऐसे कर्जदार की संपत्ति का नीलामी-खरीदार था जो कर्ज चुकाने में विफल रहा था। बिक्री “जैसा है, जहां है” के आधार पर की गई थी, जिससे याचिकाकर्ता पर ‘क्रेता सावधान’ का सिद्धांत लागू होता है।
अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता को, बैंक की ओर से आयोजित नीलामी में ऐसी संपत्ति के लिए बोली लगाते समय, कानून के तहत संपत्ति से जुड़े अवैतनिक बिजली बकाया के शुल्क के बारे में ऐसी जांच करनी चाहिए थी।”
पीठ ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उसके विक्रेता ने बिजली का उपभोग नहीं किया था। कोर्ट ने माना कि यह तर्क “सुप्रीम कोर्ट द्वारा के.सी. निनन (उपरोक्त) मामले में याचिकाकर्ता को कवर करने वाली तथ्यात्मक स्थिति में घोषित कानून के कारण टिक नहीं सकता।”
अदालत ने के.सी. निनन मामले के पैराग्राफ 1 को उद्धृत करते हुए तथ्यों की समानता पर प्रकाश डाला, जहां नीलामी में संपत्ति खरीदने वाले नए मालिकों को तब तक बिजली कनेक्शन देने से इनकार कर दिया गया था, जब तक कि उन्होंने पिछले मालिकों का बकाया नहीं चुकाया।
मामले का समापन करते हुए, पीठ ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता यू.पी. विद्युत आपूर्ति संहिता, 2005 के खंड 4.3 के प्रावधानों का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है।
आदेश में कहा गया, “याचिकाकर्ता को कानून के तहत, खरीदी गई संपत्ति में बिजली कनेक्शन प्राप्त करने के लिए, खंड 4.3 के उपरोक्त प्रावधान का पालन करना आवश्यक है।”
इसी के साथ रिट याचिका का निस्तारण कर दिया गया।