राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को जनकपुरी इलाके में कथित तौर पर सीवर मिश्रित पीने के पानी की आपूर्ति को लेकर कड़ी फटकार लगाई है। एनजीटी ने कहा कि इस गंभीर समस्या पर जल बोर्ड द्वारा अब तक कोई ठोस और शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई है।
एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य अफ़रोज़ अहमद शामिल थे, ने 14 मई को पारित आदेश में कहा, “नगरवासियों को पीने के लिए अनुपयुक्त जल की आपूर्ति एक अत्यंत गंभीर मामला है, लेकिन इसकी गंभीरता को नजरअंदाज़ करते हुए दिल्ली जल बोर्ड ने कोई त्वरित उपाय नहीं किया।”
पीठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को भी फटकार लगाई कि उसने पिछले आदेश के अनुसार समय पर जल नमूनों की रिपोर्ट दाखिल नहीं की।

यह मामला जनकपुरी की एक रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर शुरू हुआ, जिसमें दावा किया गया कि जर्जर जल पाइपलाइनों के कारण सीवर का गंदा पानी पीने के पानी में मिल गया है। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि दूषित पानी पीने से क्षेत्र के कई लोग बीमार पड़ गए हैं और एक निवासी को हेपेटाइटिस ए और ई. कोलाई होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
दिल्ली जल बोर्ड की ओर से दायर 5 अप्रैल की शपथपत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए एनजीटी ने कहा, “जब तक प्रभावित क्षेत्र में जल की गुणवत्ता पीने योग्य प्रमाणित नहीं हो जाती, यह नहीं कहा जा सकता कि जल बोर्ड ने पर्याप्त कार्रवाई की है।”
अधिकरण ने सीपीसीबी को निर्देश दिया कि वह जनकपुरी क्षेत्र के 10 पुराने और 10 नए स्थानों से बिना किसी सरकारी एजेंसी को सूचना दिए जल नमूने एकत्र करे। इन नमूनों की विशेष रूप से फीकल कोलीफॉर्म और ई. कोलाई जीवाणुओं के लिए शीघ्र जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
इस बीच, एनजीटी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य अभियंता को अगली सुनवाई (30 मई) में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर समस्या के स्थायी समाधान का खाका पेश करने को कहा है।
यह मामला राष्ट्रीय राजधानी में जल आपूर्ति और आधारभूत संरचना की खस्ताहाली को उजागर करता है, और एनजीटी ने दोहराया है कि सुरक्षित पेयजल की गारंटी सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक और तकनीकी स्तर पर शीघ्र सुधार की आवश्यकता है।