नीट पुनर्परीक्षा की मांग खारिज, राजस्थान हाईकोर्ट ने बिजली कटौती को अपर्याप्त आधार बताया

राजस्थान हाईकोर्ट ने नीट-यूजी 2025 परीक्षा के दौरान सीकर जिले में बिजली कटौती से प्रभावित परीक्षार्थियों द्वारा दायर पुनर्परीक्षा या प्रतिपूरक अंक की मांग वाली याचिकाएं खारिज कर दी हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की अस्थायी व्यवधान पुनर्परीक्षा या परिणाम में फेरबदल का आधार नहीं हो सकते।

न्यायमूर्ति समी़र जैन की एकल पीठ ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं की शिकायतों में इतना दम नहीं है कि पूरे देश में 22 लाख से अधिक परीक्षार्थियों की परीक्षा प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने या संशोधित करने की जरूरत पड़े।

ये याचिकाएं उन 31 परीक्षार्थियों द्वारा दाखिल की गई थीं जिन्होंने 4 मई को सीकर जिले के विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर नीट-यूजी में हिस्सा लिया था। आरोप था कि खराब मौसम के चलते इन केंद्रों पर 5 से 28 मिनट तक बिजली चली गई थी। हालांकि, कोर्ट ने माना कि बिजली कटौती हुई थी, लेकिन यह भी कहा कि इतने कम संख्या में परीक्षार्थियों की व्यक्तिगत शिकायतें इतने बड़े स्तर की परीक्षा को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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कोर्ट ने “de minimis non curat lex”— यानी “कानून तुच्छ बातों की परवाह नहीं करता”— सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि सीकर के कुल 31,787 परीक्षार्थियों में से केवल 31 ने ही याचिका दाखिल की है, और पूरे भारत में यह संख्या 22 लाख परीक्षार्थियों की तुलना में नगण्य है।

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कोर्ट ने यह भी गौर किया कि प्रभावित केंद्रों के कई छात्रों ने 550 से 600 अंक तक प्राप्त किए हैं और विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में यह पाया गया कि जिन केंद्रों पर बिजली गई थी, वहां के छात्रों द्वारा हल किए गए प्रश्नों की संख्या अन्य केंद्रों के बराबर थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि कोई गंभीर शैक्षणिक हानि नहीं हुई।

प्रश्न पत्रों के क्रम और दीवार घड़ियों के काम न करने को लेकर उठाए गए मुद्दों पर भी कोर्ट ने कहा कि प्रश्नों के कालानुक्रमिक क्रम को लेकर कोई नियामक बाध्यता नहीं है और न ही कोई ठोस साक्ष्य पेश किया गया जिससे शैक्षणिक नुकसान सिद्ध हो सके।

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प्रतिपूरक अंकों की मांग को लेकर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला नीट-यूजी 2024 जैसी परिस्थितियों से भिन्न है, जिसमें गलत प्रश्न पत्र सीरीज वितरित किए जाने के कारण राहत दी गई थी। लेकिन वर्तमान मामला बिजली कटौती जैसे force majeure (अप्रत्याशित परिस्थितियों) से जुड़ा है, न कि प्रणालीगत त्रुटियों से।

न्यायमूर्ति जैन ने निर्णय में कहा, “लगभग 22 लाख परीक्षार्थियों के हितों को कुछ गिने-चुने छात्रों की अपुष्ट और असंगत शिकायतों के आधार पर बलिदान नहीं किया जा सकता।”

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