मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवज़े में नहीं जोड़ी जाएगी दिवंगत सरकारी कर्मचारी के आश्रितों को “वेतन और भत्तों” के रूप में मिली वित्तीय सहायता: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने New India Assurance Co. Ltd. बनाम सुनीता शर्मा एवं अन्य [Civil Appeal @ SLP (C) No. 9515 of 2020] में स्पष्ट किया है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत देय मुआवज़े में उन आश्रितों को हरियाणा राज्य के 2006 नियमों के तहत मिली “वेतन और अन्य भत्तों” के समकक्ष वित्तीय सहायता को शामिल नहीं किया जा सकता जो किसी सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के पश्चात दी जाती है।

न्यायालय ने  हाईकोर्ट के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें 2006 नियमों के तहत मिली राशि का केवल 50% ही मुआवज़े से घटाया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि:
यह अपील एक सड़क दुर्घटना से उत्पन्न मुआवज़ा याचिका से संबंधित थी, जिसमें  हाईकोर्ट ने मुआवज़े की गणना करते समय 2006 नियमों के तहत प्राप्त अनुग्रह राशि का केवल आधा हिस्सा घटाया था। बीमा कंपनी ने इस निर्णय को चुनौती दी और तर्क दिया कि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा Reliance General Insurance Co. Ltd. बनाम शशि शर्मा, (2016) 9 SCC 627 में निर्धारित मानक के विपरीत है।

अपीलकर्ता के तर्क:
बीमा कंपनी ने दलील दी कि  हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा शशि शर्मा मामले में दी गई स्पष्ट व्यवस्था की अवहेलना की और इसके बजाय उसी  हाईकोर्ट द्वारा कमला देवी बनाम साहिब सिंह एवं अन्य (30.11.2017) में दिए गए एक विरोधाभासी निर्णय पर भरोसा किया, जो संविधान के अनुच्छेद 141 का उल्लंघन है।

कंपनी ने National Insurance Co. Ltd. बनाम बीरेंद्र एवं अन्य, 2020 SCC Online SC 28 पर भी भरोसा जताया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पुनः स्पष्ट किया था कि 2006 नियमों के तहत प्राप्त वित्तीय सहायता को मुआवज़े में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायालय की टिप्पणियां व निष्कर्ष:
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए शशि शर्मा निर्णय से उद्धृत किया:

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“1988 के अधिनियम के अंतर्गत एक न्यायसंगत मुआवज़े की गणना हेतु उचित दृष्टिकोण यह है कि दिवंगत सरकारी कर्मचारी के आश्रितों को 2006 नियमों के तहत प्राप्त या प्राप्त होने वाली उस राशि को बाहर रखा जाए, जो सामान्यतः वेतन और अन्य भत्तों के रूप में दी जाती है।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया:

  • यह कटौती केवल 2006 नियमों के नियम 5(1) के तहत मिलने वाली “वेतन और भत्तों” की राशि पर लागू होगी।
  • यह भविष्य में आय में वृद्धि, पेंशन, भविष्य निधि, जीवन बीमा आदि जैसे लाभों पर लागू नहीं होगी। ये लाभ मुआवज़े की गणना में सम्मिलित रहेंगे।

बीरेंद्र मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि यदि 2006 नियमों के तहत कोई वित्तीय सहायता मिली है तो उसे मुआवज़े से पूरी तरह घटाया जाना चाहिए, जिसमें ब्याज भी शामिल हो।

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निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने  हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए कहा कि 2006 नियमों के तहत प्राप्त पूरी राशि मुआवज़े से हटाई जानी चाहिए थी, न कि केवल 50%। हालांकि, यदि यह राशि पहले ही आश्रितों को दी जा चुकी है तो उसकी वसूली नहीं की जाएगी।

न्यायालय ने  हाईकोर्ट के दृष्टिकोण पर असहमति जताते हुए कहा:

“हमें आश्चर्य है कि  हाईकोर्ट ने इस न्यायालय के निर्णय को देखते हुए भी उसका अनुपालन नहीं किया और अपने ही एक विरोधाभासी निर्णय को मान्यता दी; जो अनुच्छेद 141 का प्रत्यक्ष उल्लंघन है।”

इसके साथ ही लंबित सभी आवेदनों का निस्तारण कर दिया गया।

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