धारा 14 HMA | असाधारण कठिनाई या अनैतिकता के मामले में आपसी सहमति से तलाक के लिए अनिवार्य एक साल की प्रतीक्षा को माफ किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति विवेक चौधरी एवं न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से तलाक की याचिका दाखिल करने के लिए निर्धारित एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को ऐसे मामलों में माफ किया जा सकता है जहाँ याचिकाकर्ता को अत्यधिक कठिनाई हो या प्रतिवादी द्वारा अत्यधिक अमानवीय व्यवहार किया गया हो। कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के इंकार को रद्द करते हुए प्रारंभिक तलाक याचिका दायर करने की अनुमति प्रदान की।

पृष्ठभूमि:

यह अपील फैजाबाद के अम्बेडकर नगर स्थित पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश द्वारा 27 मार्च 2025 को पारित आदेश को चुनौती देती है, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 तथा सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था। पारिवारिक न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि धारा 13-बी के तहत तलाक की याचिका विवाह की तिथि से कम-से-कम एक वर्ष बाद ही विचारणीय है।

इस दंपत्ति का विवाह अगस्त 2024 में हुआ था, किंतु शीघ्र ही उनके बीच गहरे मतभेद उत्पन्न हो गए और उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं। मध्यस्थता प्रयास विफल रहे और दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से तलाक की याचिका के साथ एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि से छूट की प्रार्थना करते हुए धारा 14(1) के तहत आवेदन किया।

कानूनी तर्क:

अपीलकर्ता की ओर से प्रस्तुत वकील ने तर्क दिया कि धारा 13-बी स्पष्ट रूप से अधिनियम की अन्य धाराओं, विशेषकर धारा 14 और इसके उपबंध से संयोजित है, जो असाधारण कठिनाई या अमानवीयता की स्थिति में एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि से छूट प्रदान करती है। इस विषय में विभिन्न उच्च न्यायालयों के निर्णयों का उल्लेख किया गया:

  • Pooja Gupta v. NIL (दिल्ली हाईकोर्ट)
  • Sweety EM v. Sural Kumar K.B., AIR 2008 Karnataka 1
  • Gijoosh Gopi v. Shruti S., 2012 SCC OnLine Ker 31780
  • Shivani Yadav v. Amit Yadav (पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट)
  • Manish Sirohi v. Smt. Meenakshi, 2007 SCC OnLine All 513
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प्रतिवादी की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने भी सहमति व्यक्त करते हुए निवेदन किया कि जब दोनों पक्ष विवाह समाप्त करना चाहते हैं तो प्रारंभिक तलाक याचिका स्वीकार की जानी चाहिए।

कोर्ट का विश्लेषण:

कोर्ट ने विधिक प्रावधानों एवं पूर्व निर्णयों का अवलोकन करते हुए कहा कि धारा 14(1) का उपबंध एक संकीर्ण परंतु वैध अपवाद प्रदान करता है। खंडपीठ ने अवलोकन किया:

“एक बार जब अधिनियम, 1955 की धारा 14(1) के तहत कोई आवेदन कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो निश्चित रूप से कोर्ट को यह देखना होता है कि याचिकाकर्ता को कोई असाधारण कठिनाई हो रही है या प्रतिवादी द्वारा असाधारण अमानवीयता बरती गई है।”

कोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच लंबित आपराधिक मुकदमों एवं मेल-मिलाप की असफलता को देखते हुए पाया कि धारा 14(1) का उपबंध लागू करने के लिए अपेक्षित परिस्थितियाँ विद्यमान हैं। कोर्ट ने कहा:

“जब दोनों पक्ष स्वेच्छा से संबंध समाप्त करना चाहते हैं और साथ नहीं रहना चाहते तथा वे अपनी-अपनी राह पर जीवन व्यतीत करना चाहते हैं… तो न्यायिक कार्यवाही की निरंतरता उन्हें मानसिक एवं शारीरिक रूप से अनावश्यक कष्ट देगी।”

निर्णय:

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कोर्ट ने यह पाते हुए कि मामला असाधारण कठिनाई से जुड़ा है, अपील को स्वीकार कर लिया और पारिवारिक न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आपसी तलाक की याचिका को 26 मार्च 2025 को दाखिल मानी जाए। इसके अनुसार, अब पक्षकार छह माह की अवधि पूरी होने के बाद धारा 13-बी(2) के तहत दूसरी प्रस्तुति कर सकते हैं। अपील बिना किसी व्ययादेश के स्वीकार की गई।

मामला संख्या: फर्स्ट अपील डिफेक्टिव संख्या 115 ऑफ 2025

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