मुस्लिम महिला को खुला के माध्यम से तलाक का पूर्ण अधिकार, पति की सहमति आवश्यक नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट


तेलंगाना हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मुस्लिम महिला को खुला के माध्यम से विवाह विच्छेद (तलाक) का पूर्ण अधिकार है और इसके लिए पति की सहमति आवश्यक नहीं है। अदालत ने यह निर्णय एक पारिवारिक अपील को खारिज करते हुए दिया, जिसमें एक धार्मिक संस्था द्वारा जारी खुलानामा (तलाक प्रमाणपत्र) को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति बी.आर. मधुसूदन राव की पीठ ने फैमिली कोर्ट, हैदराबाद के आदेश दिनांक 6 फरवरी 2024 को सही ठहराते हुए अपील को खारिज किया। अपीलकर्ता ने यह दावा किया था कि धार्मिक परिषद द्वारा जारी खुलानामा कानूनन अमान्य है और विवाह अब भी अस्तित्व में है।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

विवाह 2012 में संपन्न हुआ था। कुछ वर्षों बाद, पत्नी ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए खुला के माध्यम से तलाक की मांग की। पति द्वारा सहमति नहीं देने पर, पत्नी ने एक धार्मिक परिषद से संपर्क किया, जिसमें इस्लामी कानून के जानकार विद्वान शामिल थे।

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परिषद ने सुलह के प्रयास किए और तीन बार नोटिस भेजे, किन्तु पति ने परिषद की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए आगे की कार्यवाही में शामिल होने से इनकार कर दिया। 5 अक्टूबर 2020 को परिषद ने विवाह विच्छेद का खुलानामा जारी किया।

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इसके विरुद्ध पति ने फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर कर खुलानामा को अमान्य घोषित करने की मांग की, जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसी आदेश के विरुद्ध अपील हाईकोर्ट में दायर की गई थी।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ता की ओर से यह दलील दी गई कि धार्मिक परिषद एक गैर-सरकारी संस्था है और उसे विवाह विच्छेद की घोषणा करने का कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है। केवल काजी या विधि द्वारा अधिकृत अदालत ही विवाह संबंधी विवादों पर निर्णय दे सकती है।

इसके विपरीत, प्रतिवादी की ओर से कहा गया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 के अंतर्गत खुला को एक वैध और अदालती हस्तक्षेप से स्वतंत्र तलाक के रूप में मान्यता प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Juveria Abdul Majid Patni v. Atif Iqbal Masoori [(2014) 10 SCC 736] का हवाला देते हुए कहा गया कि पत्नी को खुला का अधिकार प्राप्त है और इसके लिए पति की सहमति आवश्यक नहीं है।

अदालत का विश्लेषण

अदालत ने कुरआन (सूरा अल-बक़रा, आयत 229) तथा विभिन्न न्यायिक निर्णयों के आधार पर खुला की अवधारणा को विस्तार से स्पष्ट किया। पीठ ने कहा:

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खुला एक ऐसा तलाक है जिसे पत्नी प्रारंभ करती है, और यह एक ‘नो-फॉल्ट’ तलाक है। यदि सुलह विफल हो जाए और पत्नी तलाक की मांग करे, तो पति की सहमति आवश्यक नहीं है।”

अदालत ने चार प्रक्रियात्मक दृष्टिकोणों को रेखांकित किया:

  1. निजी समझौता (Private Settlement) — मुफ़्ती द्वारा फतवा जारी किया जा सकता है, परंतु यह वैधानिक रूप से बाध्यकारी नहीं होता।
  2. सीधा वैधानिक प्रभावखुला का अधिकार तलाक के समांतर है, दोनों एकतरफा और पूर्ण अधिकार हैं।
  3. न्यायिक पुष्टि (Judicial Endorsement) — यदि विवाद उत्पन्न हो तो पक्षकार फैमिली कोर्ट में वैवाहिक स्थिति की पुष्टि हेतु याचिका दायर कर सकते हैं।
  4. संवैधानिक व्याख्याShayara Bano v. Union of India के अनुसार, पत्नी को विवश करके विवाह में बनाए रखना कुरआन और कानून दोनों के विरुद्ध है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा Shahjahan v. State of Uttar Pradesh 2025 और Vishwa Lochan Madan v. Union of India में भी यह स्पष्ट किया गया है कि धार्मिक संस्थानों द्वारा दिए गए फतवे या खुलानामा का कोई कानूनी बल नहीं होता।

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महत्वपूर्ण टिप्पणियां और निर्णय

कोर्ट ने कहा:

पत्नी को खुला मांगने का अधिकार पूर्ण है और इसके लिए पति की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।

हालांकि, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी खुलानामा को वैधानिक मान्यता तभी प्राप्त होती है जब वह न्यायालय द्वारा पुष्टि हो — न कि केवल किसी धार्मिक संस्था द्वारा घोषित करने पर।

फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित छह बिंदुओं में से चौथे और पांचवें बिंदु — जिनमें मुफ़्ती द्वारा खुलानामा देने की वैधानिकता मानी गई थी — को हाईकोर्ट ने कानून के विपरीत बताया।

अदालत ने कहा कि यदि विवाद हो, तो पति-पत्नी दोनों के लिए फैमिली कोर्ट ही एकमात्र मंच है जो वैवाहिक स्थिति की वैधानिक समीक्षा कर सकता है।

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