मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गोकुलराज हत्या मामले में कई आरोपियों की सजा को बरकरार रखा है। यह मामला जातिगत संबंधों के कारण काफी चर्चित रहा है। न्यायमूर्ति एम.एस. रमेश और न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की पीठ ने यह फैसला सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 23 जून 2015 का है जब नामक्कल जिले में एक अनुसूचित जाति (एससी) के इंजीनियरिंग छात्र गोकुलराज का सिर कटा शव रेलवे ट्रैक पर मिला था। अभियोजन पक्ष का तर्क था कि गोकुलराज की हत्या उसके स्वाति के साथ संबंधों के कारण की गई, जो कि कोंगु वेल्लालर समुदाय से थी, जो सामाजिक पदानुक्रम में उच्च मानी जाती है।
कानूनी मुद्दे
इस मामले में कई महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे शामिल थे, जिनमें शामिल हैं:
1. प्रेरणा और जातिगत घृणा: अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि हत्या जातिगत घृणा से प्रेरित थी, क्योंकि आरोपी कोंगु वेल्लालर समुदाय से थे और अंतरजातीय संबंधों का विरोध करते थे।
2. षड्यंत्र और अंतिम बार देखा जाना: अभियोजन पक्ष ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर भरोसा किया कि आरोपी गोकुलराज की हत्या की साजिश में शामिल थे और अंतिम बार उसके साथ देखे गए थे।
3. इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की स्वीकृति: इस मामले में सीसीटीवी फुटेज और कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स जैसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों पर भारी निर्भरता थी।
न्यायालय का निर्णय
न्यायालय ने आरोपी, विशेषकर धीरन चिन्नमलाई परवई संगठन के नेता युवराज (ए1) की सजा को बरकरार रखा। न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने प्रेरणा, षड्यंत्र और आरोपी की संलिप्तता को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला के माध्यम से सफलतापूर्वक स्थापित किया है।
न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
अपने विस्तृत निर्णय में न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की:
– जातिगत घृणा पर: “यह मामला मानव व्यवहार के अंधेरे पक्ष को उजागर करता है, हमारे समाज के कुरूप पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है; जाति व्यवस्था, कट्टरता और वंचित वर्ग के लोगों के प्रति अमानवीय व्यवहार,” न्यायालय ने नोट किया।
– गवाहों के विरोधी होने पर: न्यायालय ने गवाहों के विरोधी होने की प्रवृत्ति पर खेद जताया, “इस तरह के मामले आपराधिक न्याय प्रणाली के कैसे आसानी से गवाहों द्वारा हेरफेर और प्रभावित हो सकते हैं, इसके पाठ्यपुस्तक उदाहरण हैं।”
– इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों पर: न्यायालय ने आधुनिक आपराधिक मुकदमों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के महत्व पर जोर दिया, “अभियोजन पक्ष के मामले की ताकत वैज्ञानिक साक्ष्य में है जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स, हस्तलेखन विशेषज्ञ की राय, फोरेंसिक विशेषज्ञों की राय और डीएनए रिपोर्ट्स।”
निर्णय का विवरण
न्यायालय ने मुख्य आरोपी युवराज (ए1) सहित दोषियों की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा और राज्य एवं पीड़ित परिवार द्वारा सजा में वृद्धि और कुछ आरोपियों की बरी को चुनौती देने वाली अपीलों को भी निपटाया।
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शामिल पक्ष
– अपीलकर्ता/आरोपी: युवराज (ए1) और अन्य।
– प्रतिवादी/शिकायतकर्ता: राज्य, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, सीबीसीआईडी, नामक्कल जिला, और पुलिस निरीक्षक, सीबीसीआईडी, नामक्कल जिला द्वारा प्रतिनिधित्व।
– वास्तविक शिकायतकर्ता: श्रीमती वी. चित्रा, पत्नी वेंकटचलम।
– मामला संख्या: Crl.A.(MD).Nos.228, 230, 232, 233, 515, 536, और 747 का 2022।
शामिल वकील
– अपीलकर्ताओं के लिए: श्री गोपालकृष्ण लक्ष्मण राजू, वरिष्ठ वकील M/s. Rishwant S.G.L, और अन्य।
– प्रतिवादियों के लिए: श्री ए. थिरुवाडी कुमार, अतिरिक्त लोक अभियोजक, और अन्य।