सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि मोटर दुर्घटना मुआवज़ा मामलों में ब्याज दावा याचिका दायर करने की तारीख से लेकर भुगतान की तारीख तक देय होगा, और यदि मुकदमे की सुनवाई में देरी हुई है तो मात्र दावेदारों की उपस्थिति के आधार पर उस देरी के लिए उन्हें ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यह निर्णय 14 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने विशेष अनुमति याचिका (नागरिक) संख्या 11340 / 2020: ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम नीरू @ निहारिका एवं अन्य तथा SLP (C) No. 22136 / 2024 में सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
18 नवंबर 1995 को एक सड़क दुर्घटना में ब्रिटिश टेलीकॉम (यूके) में कार्यरत एक इंजीनियर की मौत हो गई। वह अपनी पत्नी और दो नाबालिग बच्चों के साथ यूनाइटेड किंगडम में रह रहे थे। मृतक की पत्नी और बच्चे मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष ₹1,00,00,000 (बाद में संशोधित कर ₹1,30,00,000) का मुआवज़ा मांगने पहुंचे थे।
अधिकरण ने प्राथमिकी (FIR) और संबद्ध मामले में पूर्व में पारित निर्णय के आधार पर ट्रक चालक को लापरवाह ठहराया। मृतक की आय का आकलन कर, व्यक्तिगत ख़र्च हेतु 1/3 घटाते हुए और 13 का गुणक (multiplier) लागू कर ₹78,33,540 की क्षतिपूर्ति निर्धारित की गई। साथ ही ₹40,000 संयुग्मन हानि (loss of consortium) और ₹15,000-₹15,000 संपत्ति हानि एवं अंतिम संस्कार खर्च के लिए जोड़कर कुल ₹79,04,540 का मुआवज़ा तय किया गया।

पक्षकारों के तर्क
इंश्योरेंस कंपनी ने इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कई आपत्तियाँ उठाईं:
- दुर्घटना के लिए कार चालक की लापरवाही को ज़िम्मेदार ठहराया।
- पत्नी के 2002 में पुनर्विवाह के चलते गुणक केवल 7 वर्षों (1995–2002) तक सीमित रखने की बात कही।
- मृतक की आय (ब्रिटिश पाउंड) का रुपया में विनिमय दर (exchange rate) अधिकरण द्वारा गलत मानी गई।
- 9% ब्याज दर को अधिक बताया।
- दावा याचिका 1995 में दायर होने के बावजूद 2017 में निपटी — इस देरी के लिए दावेदारों को ज़िम्मेदार ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने इन तर्कों पर विस्तार से विचार किया:
- लापरवाही: कोर्ट ने अधिकरण और हाईकोर्ट के ट्रक चालक को दोषी ठहराने के निष्कर्ष को सही माना, जो FIR और पूर्व निर्णयों पर आधारित था।
- गुणक और आय: कोर्ट ने 1/3 व्यक्तिगत ख़र्च कटौती, भविष्य की संभावनाओं के लिए 30% जोड़ और 13 का गुणक लागू करने को उचित ठहराया। पत्नी के पुनर्विवाह और पेंशन रुकने को ध्यान में रखते हुए भी कोर्ट ने माना कि नाबालिग बच्चों को पूरा गुणक मिलना चाहिए।
- विनिमय दर: कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा संशोधित ₹52.3526 प्रति पाउंड की दर स्वीकार की (अधिकरण की ₹54.2601 दर की तुलना में)।
- ब्याज और देरी: महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी के इस तर्क को खारिज किया कि देरी के लिए केवल दावेदार ज़िम्मेदार थे। कोर्ट ने कहा:
“सिर्फ इसलिए कि विभिन्न तारीखों पर 4 वर्षों तक मामला दावेदारों के साक्ष्य के लिए सूचीबद्ध था, इसका अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि देरी के लिए केवल दावेदार ज़िम्मेदार थे। विधिक प्रक्रियाओं में होने वाली देरी, बिना उचित साक्ष्य के, पक्षकारों पर नहीं थोपी जा सकती।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 9% वार्षिक ब्याज उचित है और यह दावा दायर करने की तारीख से भुगतान की तारीख तक देय रहेगा, विशेषकर क्योंकि केवल साधारण ब्याज दिया गया है और दावेदारों को लंबी सुनवाई के कारण मुआवज़े का लाभ नहीं मिल सका। - भविष्य संभावनाओं पर ब्याज: कोर्ट ने यह तर्क भी खारिज किया कि भविष्य संभावनाओं की राशि पर ब्याज नहीं होना चाहिए, यह कहते हुए कि व्यावहारिक रूप से राशि का भुगतान उस अवधि के बाद हुआ जिसके लिए गुणक लगाया गया था।
- इंश्योरेंस कंपनी की ज़िम्मेदारी: कोर्ट ने कहा कि यदि इंश्योरेंस कंपनी ने दुर्घटना की सूचना मिलते ही मोटे हिसाब से अंतरिम भुगतान कर दिया होता, तो ब्याज देनदारी कम हो सकती थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने ₹76,63,508 के मुआवज़े को, जिसमें सभी मदें शामिल हैं, हाईकोर्ट द्वारा तय 9% ब्याज दर के साथ बनाए रखा। इसमें ₹50,000 अंतरिम मुआवज़ा घटाकर, शेष राशि का भुगतान आदेशित किया गया। कोर्ट ने चेतावनी दी:
“यदि तीन महीने के भीतर भुगतान नहीं हुआ, तो संपूर्ण राशि पर चूक की तारीख से 12% ब्याज लागू होगा।”
कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज करते हुए सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया।