सरफेसी एक्ट के तहत मंत्रिस्तरीय कर्तव्यों में देरी नहीं होनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट  

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति बृज राज सिंह शामिल थे, ने 25 अक्टूबर 2024 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इस फैसले में उन्होंने सरफेसी एक्ट, 2002 की धारा 14 के तहत दायर आवेदनों के शीघ्र निपटान की आवश्यकता पर जोर दिया।  

मामले की पृष्ठभूमि  

याचिकाकर्ता बैंक ऑफ बड़ौदा (पहले विजया बैंक), जिसे अधिवक्ता शैलेंद्र सिंह राजावत द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया, ने हाईकोर्ट का रुख किया। उन्होंने अपने धारा 14 के आवेदन के शीघ्र निपटान के निर्देश मांगे, जो 2022 से अमेठी के जिला मजिस्ट्रेट के पास लंबित था। यह आवेदन गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) की वसूली के लिए सुरक्षित संपत्तियों का कब्जा लेने में सहायता के लिए किया गया था।  

Play button

उत्तरदाताओं की ओर से अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता मनीष मिश्रा ने देरी स्वीकार की, लेकिन इसे प्रक्रियागत बाधाओं, बार-बार स्थगन और सुनवाई की तारीखों पर वकीलों की अनुपस्थिति के कारण ठहराया। हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह की देरी सरफेसी एक्ट के उद्देश्य को विफल करती है, जो सुरक्षित ऋणदाताओं के लिए ऋण की शीघ्र वसूली सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।  

READ ALSO  गुजरात हाईकोर्ट ने पूर्व रूममेट की बाथरूम फोटो इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने पर महिला पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया

कानूनी मुद्दे  

1. धारा 14 के तहत कार्यवाही की प्रकृति  

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 14 के तहत कार्यवाही मंत्री स्तरीय है। इसमें डीएम या मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट (सीएमएम) का काम केवल यह सुनिश्चित करना है कि सुरक्षित ऋणदाता ने प्रक्रियागत आवश्यकताओं का पालन किया है और संपत्ति पर कब्जा दिलाने में सहायता प्रदान की जाए। यह कोई विवाद समाधान मंच नहीं है।  

2. बॉरोअर्स को नोटिस की आवश्यकता  

कोर्ट ने कहा कि धारा 14 के तहत बॉरोअर्स या तीसरे पक्ष को नोटिस जारी करना अनावश्यक है। ऐसा करना वसूली प्रक्रिया में अनावश्यक देरी उत्पन्न करता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला दिया, जैसे कि बालकृष्ण राम तारले बनाम फीनिक्स एआरसी प्रा. लि. और सी. ब्राइट बनाम जिला कलेक्टर, जिसमें इस प्रक्रिया को तेज और कुशल रखने की बात कही गई है।  

3. समयबद्ध निपटान की आवश्यकता  

धारा 14 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आवेदनों का निपटान 30 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए, और यदि कोई उचित कारण हो, तो इसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। कोर्ट ने बार-बार स्थगन और प्रशासनिक लापरवाही को कानून की मंशा के खिलाफ करार दिया।  

READ ALSO  न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने संपत्ति मामले में सी.जे.आई. चंद्रचूड़ द्वारा पूर्व न्यायाधीश की आलोचना पर आपत्ति जताई

कोर्ट की टिप्पणियां  

कोर्ट ने अपने आदेश में कड़ी भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा:  

“धारा 14 के तहत शक्ति मंत्री स्तरीय है। समय बहुत महत्वपूर्ण है, और यह इस विशेष कानून की आत्मा है। इस प्रकार के कार्यों में देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।”  

जिला मजिस्ट्रेट, अमेठी की आलोचना करते हुए कोर्ट ने कहा कि उन्होंने आवेदन को ऐसा समझा जैसे यह कोई न्यायिक कार्यवाही हो, जिसमें विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता हो।  

निर्देश  

1. लंबित आवेदन का निपटान  

कोर्ट ने अमेठी के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वे धारा 14 के तहत लंबित आवेदन का निपटान एक महीने के भीतर करें।  

2. संचार और निगरानी  

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया गया कि वे इस निर्णय को राज्य के सभी जिलाधिकारियों और सरफेसी आवेदन के लिए जिम्मेदार अतिरिक्त जिलाधिकारियों तक पहुंचाएं। साथ ही, इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक तंत्र बनाने की सिफारिश की गई।  

3. आदेशों का पालन  

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 14 के तहत पारित आदेशों का पालन करने की जिम्मेदारी अधिकारियों की है और उन्हें इसे प्राथमिकता देनी चाहिए।  

READ ALSO  एटीएस की कार्रवाईः आईपीएल क्रिकेट मैचों पर सट्टा लगा रहे नौ सटोरिए गिरफ्तार

कानूनी संदर्भ  

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया कि:  

– बालकृष्ण राम तारले बनाम फीनिक्स एआरसी प्रा. लि.: धारा 14 के तहत कार्यवाही मंत्री स्तरीय है और इसमें विवादों का समाधान शामिल नहीं है।  

– सी. ब्राइट बनाम जिला कलेक्टर: समय बहुत महत्वपूर्ण है, और निर्धारित समय सीमा का सख्ती से पालन होना चाहिए।  

– स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बनाम नोबल कुमार: मजिस्ट्रेट की संतुष्टि केवल हलफनामे और प्रक्रियागत अनुपालन की जांच तक सीमित है।  

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 141 का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून पूरे देश में सभी अदालतों और अधिकारियों के लिए बाध्यकारी है।  

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles