जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने मंगलवार को पीडीपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती की उस जनहित याचिका (PIL) पर तर्क सुने, जिसमें जम्मू-कश्मीर के उन अंडरट्रायल कैदियों की वापसी की मांग की गई है जिन्हें केंद्रशासित प्रदेश से बाहर की जेलों में रखा गया है।
यह मामला मुख्य न्यायाधीश अरुण पाली और न्यायमूर्ति राजनेश ओसवाल की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुआ।
कोर्ट ने इस पर विस्तार से चर्चा की कि क्या J-K के अंडरट्रायल कैदियों को दूर-दराज की जेलों में रखने से उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है, खासकर कानूनी सहायता तक पहुंच और परिवार से संपर्क के अधिकार का।
मेहबूबा के वकील अधिवक्ता आदित्य गुप्ता ने बताया कि पिछली सुनवाई (3 नवंबर) में अदालत द्वारा उठाए गए कई सवालों को संबोधित किया गया है।
उन्होंने कहा, “पिछली सुनवाई में जो सवाल उठाए गए थे, उन्हें और उनसे जुड़े काउंटर-क्वेशंस को आज विस्तार से रखा गया, खासकर याचिका की मेंटेनबिलिटी और यह कि क्या अंडरट्रायल एक अलग ‘क्लास ऑफ़ पर्सन्स’ माने जा सकते हैं… दोनों पक्षों की दलीलें कोर्ट ने सुनीं।” अगले सुनवाई की तारीख अलग से जारी की जाएगी।
गुप्ता ने कहा कि यह अदालत को तय करना है कि क्या अनुच्छेद 14 और 21 में निहित कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकार ने उन्हें J-K के बाहर की जेलों में भेज दिया है।
उन्होंने आगे कहा, “ऐसी हिरासतें अनुच्छेद 14 और 21 के अधिकारों का हनन हैं, खासकर समानता, परिवार से संपर्क, प्रभावी कानूनी सहायता और निष्पक्ष व शीघ्र सुनवाई के अधिकार का।”
याचिका में अंडरट्रायल की वापसी और निगरानी तंत्र की मांग
26 अक्टूबर को दायर इस PIL में मांग की गई है कि जम्मू-कश्मीर के अंडरट्रायल कैदियों को स्थानीय जेलों में वापस भेजा जाए, जब तक कि सरकार किसी विशेष मामले में ठोस और लिखित कारण न बताए कि किसी कैदी को UT से बाहर रखना क्यों आवश्यक है। ऐसी सभी स्थितियों की तिमाही आधार पर न्यायिक समीक्षा करने का आग्रह भी किया गया है।
याचिका में एक दो-सदस्यीय निगरानी और शिकायत निवारण समिति बनाने की भी मांग की गई है, जिसमें एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश शामिल हों। यह समिति:
- अंडरट्रायल कैदियों के स्थानों का ऑडिट करे
- परिवार-संपर्क रिकॉर्ड की जांच करे
- वकीलों से मुलाकात के रजिस्टर और प्रोडक्शन ऑर्डर की समीक्षा करे
याचिका के अनुसार, समिति को गैर-अनुपालन की स्थिति में अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने और अपनी रिपोर्ट हर दो महीने में हाई कोर्ट को सौंपने का अधिकार भी होना चाहिए।
अगली सुनवाई की तिथि अदालत द्वारा बाद में जारी की जाएगी।




