मणिपुर हाईकोर्ट ने लीमाखोंग सेना शिविर से एक व्यक्ति के रहस्यमय ढंग से लापता होने की जांच के लिए एक समिति गठित करके निर्णायक कार्रवाई की है, एक ऐसी घटना जिसने सैन्य सुविधाओं के भीतर सुरक्षा और निगरानी को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं। यह निर्णय बुधवार को एक सत्र के दौरान आया, जहां न्यायमूर्ति डी कृष्णकुमार और न्यायमूर्ति गोलमेई गैफुलशिलु की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने लापता व्यक्ति के भाई द्वारा दायर एक परेशान करने वाली याचिका का जवाब दिया।
56 वर्षीय लैशराम कमल के 25 नवंबर को लापता होने की सूचना मिली थी, जिसके बाद उनके भाई ने गड़बड़ी की आशंका के चलते न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की। शुरुआत में, 27 नवंबर को, हाईकोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों से एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी। इन पक्षों की ओर से अनुपालन में कमी के कारण एक जांच समिति की औपचारिक स्थापना हुई।
इस नवगठित निकाय में उच्च पदस्थ अधिकारी शामिल हैं, जिनमें कांगपोकपी के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और पुलिस अधीक्षक (एसपी), इम्फाल पश्चिम के एसपी और सेना के 57 माउंटेन डिवीजन के मुख्य सुरक्षा अधिकारी शामिल हैं, जो कर्नल रैंक के हैं। उनका मिशन यह पता लगाना है कि क्या कमल को शिविर के परिसर में ही अगवा किया गया था या वह अपनी मर्जी से गया था।
हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि लापता व्यक्ति का परिवार समिति के साथ पूरा सहयोग करे और अपने पास मौजूद कोई भी अतिरिक्त दस्तावेज या सबूत उपलब्ध कराए। जिला मजिस्ट्रेट की अगुआई वाली समिति याचिकाकर्ता और परिवार के अन्य सदस्यों को भी पूछताछ के लिए बुलाएगी। इस जांच के निष्कर्ष 11 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई में पेश किए जाने की उम्मीद है।
कहानी को जटिल बनाते हुए याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि कुकी उग्रवादियों ने उसके भाई को सेना शिविर के उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र से अगवा किया। इस दावे ने मामले को और जटिल बना दिया है, क्योंकि कमल सेना परिसर में काम करने वाली एक निर्माण कंपनी में पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत है।