मणिपुर हाईकोर्ट ने जिरीबाम हत्याकांड की जांच में प्रगति को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। नवंबर 2024 में हुए इस दर्दनाक घटना में मेइती समुदाय की तीन महिलाओं और तीन बच्चों की कथित रूप से कुकी-ह्मार उग्रवादियों द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश के. सोमशेखर और न्यायमूर्ति अहंथेम बिमोल सिंह की खंडपीठ ने सोमवार को सामाजिक कार्यकर्ता सोराम टेकेंद्रजीत द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। अदालत ने जांच की धीमी गति पर गंभीर चिंता जताते हुए चार्जशीट दाखिल न होने को लेकर कड़ा रुख अपनाया।
अदालत ने टिप्पणी की, “इस घटना को सात महीने से अधिक समय बीत चुका है। यदि अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है, तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।” अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि घटना के दिन—11 नवंबर 2024—को प्राथमिकी दर्ज कर ली गई थी, लेकिन भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167 के तहत अब तक कोई प्रगति रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई है और न ही कोई चार्जशीट पेश की गई है।

खंडपीठ ने एनआईए को निर्देश दिया कि वह आगामी सुनवाई की तिथि 24 जुलाई से पहले एक समग्र प्रगति रिपोर्ट दाखिल करे।
यह मामला जिरीबाम जिले के बोरबेकरा क्षेत्र में 11 नवंबर 2024 को हुई एक बर्बर हमले से संबंधित है, जिसमें तीन मेइती महिलाओं और तीन बच्चों, जिनमें एक 10 माह का शिशु भी शामिल था, को उग्रवादियों ने अगवा कर लिया था। चार दिन बाद उनके गोलियों से छलनी शव मणिपुर-असम सीमा पर स्थित बाराक नदी में पाए गए थे। उसी हमले में दो अन्य नागरिकों की भी हत्या कर दी गई थी और कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया था।
अदालत का यह निर्देश ऐसे समय आया है जब राज्य में बिगड़ती कानून-व्यवस्था और जातीय हिंसा से जुड़े मामलों में न्याय की देरी को लेकर जनता में गहरी चिंता व्यक्त की जा रही है।