क्या मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति से बच्चों, रिश्तेदारों या तीसरे व्यक्ति को बेदखल कर सकता है? इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने दिया जवाब

वरिष्ठ नागरिकों और माता-पिता के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत गठित मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल और अपीलीय प्राधिकरण की शक्तियों को लेकर जारी कानूनी भ्रम को स्पष्ट करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने यह निर्णय दिया है कि इस अधिनियम या उत्तर प्रदेश राज्य नियमों में स्पष्ट प्रावधान के अभाव में किसी को बेदखल करने का आदेश पारित नहीं किया जा सकता

यह निर्णय आर्टिकल 227 के अंतर्गत वाद संख्या 612/2024 में सुनाया गया, जिसमें याची ओंकार नाथ गौर और एक अन्य बनाम जिलाधिकारी/अध्यक्ष अपीलीय अधिकरण, लखनऊ व अन्य थे। मामले को एकल पीठ द्वारा बड़े पीठ के पास इसलिए भेजा गया क्योंकि विभिन्न पीठों द्वारा इस विषय पर परस्पर विरोधी निर्णय दिए गए थे।

पूर्ण पीठ में न्यायमूर्ति अत्ताउ रहमान मसूदी, न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी शामिल थे।

पृष्ठभूमि

विवाद का मूल प्रश्न यह था कि क्या 2007 के अधिनियम के अंतर्गत गठित ट्रिब्यूनल वरिष्ठ नागरिकों की संपत्ति से उनके बच्चों, रिश्तेदारों या किसी तीसरे पक्ष को बेदखल कर सकते हैं। शिवानी वर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) के एक निर्णय में यह माना गया था कि बेदखली का आदेश पारित किया जा सकता है, जबकि स्वराज वरुण (2020) और बिप्राजी सिंह (2021) में इस दृष्टिकोण से असहमति जताई गई थी।

न्यायालय के विश्लेषण और निष्कर्ष

न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह ने विस्तारपूर्वक अधिनियम की योजना, उद्देश्य और संरचना का परीक्षण करते हुए कहा:

“2007 के अधिनियम या 2014 के नियमों में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के पास बेदखली का आदेश देने की शक्ति है।”

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि:

  • अधिनियम में “भरण-पोषण” की परिभाषा में निवास शामिल होने के बावजूद, यह बेदखली के आदेश को स्वीकृति नहीं देता;
  • उत्तर प्रदेश द्वारा बनाए गए 2014 के नियमों में कहीं भी बेदखली की प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है, जबकि पंजाब और चंडीगढ़ जैसे राज्यों ने अपने नियमों में यह शक्ति स्पष्ट रूप से प्रदान की है;
  • अपीलीय प्राधिकरण केवल उन्हीं सीमित अपीलों को सुन सकता है जिन्हें अधिनियम में मान्यता दी गई है — अर्थात्, वरिष्ठ नागरिकों या माता-पिता द्वारा दायर की गई अपीलें, और वह भी केवल मेंटेनेंस के आदेशों के संदर्भ में।
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निर्णायक टिप्पणी

पूर्ण पीठ ने इस प्रकार निष्कर्ष निकाला:

“जब तक अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों में विशेष रूप से ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया जाता, तब तक मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल या अपीलीय प्राधिकरण द्वारा बेदखली का आदेश पारित नहीं किया जा सकता।”

न्यायालय ने शिवानी वर्मा में व्यक्त किए गए दृष्टिकोण को असंगत बताते हुए स्वराज वरुण और बिप्राजी सिंह के निर्णयों को सही विधिक व्याख्या बताया।

प्रकरण विवरण:
वाद शीर्षक: ओंकार नाथ गौर व एक अन्य बनाम जिलाधिकारी/अध्यक्ष अपीलीय अधिकरण, लखनऊ व अन्य
वाद संख्या: आर्टिकल 227 के अंतर्गत वाद संख्या 612/2024

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