सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र में सभी स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए 31 जनवरी, 2026 की अंतिम समयसीमा तय कर दी और राज्य चुनाव आयोग (SEC) को समय पर कार्रवाई न करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि यह समयविस्तार केवल “एक बार की रियायत” है और अब आगे कोई भी छूट नहीं दी जाएगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने निर्देश दिया कि सभी जिला परिषदों, पंचायत समितियों और नगरपालिकाओं के चुनाव तय समय के भीतर पूरे किए जाएं। आदेश में कहा गया—
“स्थानीय निकायों के सभी चुनाव जनवरी 2026 तक कराए जाएं। राज्य अथवा राज्य चुनाव आयोग को आगे कोई विस्तार नहीं मिलेगा। यदि किसी प्रकार की तार्किक सहायता चाहिए तो SEC 31 अक्टूबर 2025 तक इस न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकता है, उसके बाद कोई प्रार्थना स्वीकार नहीं की जाएगी।”
अदालत ने कहा कि चल रही परिसीमन प्रक्रिया (delimitation) 31 अक्टूबर 2025 तक पूरी होनी चाहिए और इसे चुनाव टालने का आधार नहीं बनाया जा सकता। साथ ही, ईवीएम की अनुपलब्धता, बोर्ड परीक्षाओं के दौरान स्कूल भवनों की कमी, और कर्मचारियों की कमी जैसे कारणों को अदालत ने सीधे-सीधे खारिज कर दिया।

पीठ ने कहा, “हम यह टिप्पणी करने के लिए विवश हैं कि SEC ने निर्धारित समय में इस न्यायालय के निर्देशों का पालन करने में तत्परता नहीं दिखाई।” अदालत ने स्पष्ट किया कि बोर्ड परीक्षाएं मार्च 2026 में होंगी, इसलिए जनवरी तक चुनाव टालने का यह कारण भी स्वीकार्य नहीं है।
कर्मचारियों की कमी दूर करने के लिए अदालत ने SEC को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह के भीतर आवश्यक कर्मचारियों का विवरण राज्य के मुख्य सचिव को सौंपे और मुख्य सचिव चार सप्ताह में आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराएं।
ईवीएम की कमी को लेकर अदालत ने कहा कि SEC व्यवस्था सुनिश्चित करे और 30 नवंबर 2025 तक अनुपालन हलफनामा दाखिल करे।
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण (Other Backward Classes) के मुद्दे पर 2022 से अटके हुए हैं। इसी साल मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि चुनाव उस आरक्षण ढांचे के आधार पर कराए जाएं जो जे.के. बंथिया आयोग की 2022 की रिपोर्ट से पहले अस्तित्व में था।
अदालत ने तब कहा था कि “ओबीसी समुदायों को वही आरक्षण दिया जाएगा जो 2022 से पहले महाराष्ट्र में लागू था,” और चार महीने के भीतर चुनाव कराने का निर्देश दिया था।
मंगलवार को अदालत ने दोहराया कि जमीनी लोकतंत्र और समय-समय पर चुनाव कराना संवैधानिक अनिवार्यता है। ओबीसी समुदायों के समावेशन या बहिष्करण को बाद में संशोधन से संबोधित किया जा सकता है, लेकिन चुनाव इस बहस की भेंट नहीं चढ़ सकते।
पंचायती राज मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार, महाराष्ट्र में 34 में से 26 जिला परिषदों, 351 में से 289 पंचायत समितियों और 27,933 में से 26,723 ग्राम पंचायतों में चुनाव लंबित हैं।
इस कारण 2022-23 से राज्य को लगभग ₹3,000 करोड़ की राशि जारी नहीं की गई है, जिससे जमीनी स्तर पर शासन और विकास कार्य पूरी तरह ठप हैं।
यह गतिरोध राज्य की भाजपा-नेतृत्व वाली महायुति सरकार के दौरान बना हुआ है। 2022 में जब डेटा संग्रह में देरी हुई, तब सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक आदेश दिया था कि ओबीसी आरक्षित सीटों को अस्थायी रूप से सामान्य श्रेणी में बदला जाए ताकि चुनाव समय पर हो सकें। फिर भी चुनाव नहीं कराए गए।