मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने पेंशनभोगियों और उनके परिवारों को कानूनी संरक्षण प्रदान करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय में पारिवारिक पेंशन प्राप्त कर रही एक विधवा से की गई वसूली के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि इतनी लंबी अवधि के बाद और बिना समुचित सूचना के की गई वसूली प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और स्थापित न्यायिक मिसालों का उल्लंघन है।
यह फैसला न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने रिट याचिका (एमडी) संख्या 22607/2022 में सुनाया, जिसे पुदुकोट्टई के पूर्व ग्राम प्रधान बी. आंडप्पन की विधवा ए. पवुनम्मल ने दायर किया था। याचिका में कीरनूर के सहायक कोषाधिकारी द्वारा 22.08.2022 को जारी आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें नवंबर 2017 से जुलाई 2022 के बीच ₹2,94,233 की कथित अधिक भुगतान की गई पेंशन की वापसी की मांग की गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
बी. आंडप्पन ने 1957 में सरकारी सेवा ज्वाइन की थी लेकिन 14.11.1980 से प्रभावी एक विशेष अध्यादेश के तहत उन्हें सेवा से हटा दिया गया था। इसके बावजूद, उन्हें 23.08.1996 के शासनादेश संख्या 828 के तहत विशेष पेंशन दी गई। उनकी मृत्यु के बाद 19.11.2017 को उनकी पत्नी पवुनम्मल को 20.11.2017 से ₹6,750 प्रति माह की पारिवारिक पेंशन स्वीकृत की गई थी।
यह पेंशन जुलाई 2022 तक मिलती रही, जब क्षेत्रीय संयुक्त निदेशक द्वारा ऑडिट के दौरान यह पाया गया कि पवुनम्मल केवल ₹2,250 प्लस भत्तों की हकदार थीं, जैसा कि वित्त विभाग के शासनादेश संख्या 336, दिनांक 17.11.2017 में उल्लेख है। इसके आधार पर कोषागार अधिकारियों ने पेंशन रोक दी और अधिक भुगतान की गई राशि की वसूली का आदेश जारी किया।
मुख्य कानूनी बिंदु व अदालत के निष्कर्ष
🔹 प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन:
न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने कहा कि उक्त वसूली आदेश बिना समुचित कारण बताओ नोटिस दिए और पर्याप्त सुनवाई का अवसर दिए पारित किया गया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ।
🔹 विलंब और कानूनी रोक:
अदालत ने यह भी कहा कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के पांच वर्ष बाद पारिवारिक पेंशन की वसूली का आदेश जारी किया गया है, जो कि State of Punjab vs. Rafiq Masih (2015) 4 SCC 334 के तहत अवैध है।
“यह मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित उन्हीं परिस्थितियों में आता है जिनमें कहा गया है कि सेवा-निवृत्त कर्मचारियों या उनके परिजनों से वसूली कानूनन मान्य नहीं है।” – न्यायमूर्ति शमीम अहमद
🔹 कोई धोखाधड़ी नहीं:
कोई भी आरोप नहीं था कि याचिकाकर्ता या उनके पति ने धोखाधड़ी या गलत जानकारी दी हो। ऐसे में वसूली को अनुचित ठहराया गया।
🔹 सहमति पत्र पर संदेह:
कोषाधिकारी ने दावा किया कि पवुनम्मल ने ₹3,000 मासिक कटौती की सहमति दी थी, परंतु अदालत को ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला। उसी दिन वसूली आदेश जारी किया गया, जिससे प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी उजागर होती है।
प्रमुख न्यायिक उद्धरण:
- State of Punjab vs. Rafiq Masih (2015): “सेवानिवृत्त कर्मचारियों से वसूली कानूनन अमान्य है।”
- Syed Abdul Qadir vs. State of Bihar (2009): “अधिक भुगतान की गई राशि की वसूली नहीं की जानी चाहिए।”
- C. Rajeswari vs. Accountant General (2019): “पारिवारिक पेंशनर से भी वसूली नहीं की जा सकती, चाहे अधिक भुगतान गलती से हुआ हो।”
अंतिम निर्णय:
अदालत ने 22.08.2022 का आदेश रद्द करते हुए याचिका को स्वीकार किया और अधिकारियों को निर्देश दिया:
- 01.08.2022 से ₹6,750 मासिक की दर से बकाया पेंशन छह सप्ताह के भीतर चुकाएं
- नियमित पेंशन का भुगतान पुनः शुरू करें
“इस कोर्ट को ऐसी कोई ठोस वजह नहीं दिखती जिससे लंबी अवधि के बाद पेंशन राशि की वसूली को जायज ठहराया जा सके।” – न्यायमूर्ति शमीम अहमद
विधिक पक्षकार:
याचिकाकर्ता: अधिवक्ता श्री अलागिया नांबी द्वारा प्रस्तुत
प्रत्युत्तरदाता:
- आर1: महालेखाकार (A&E) – श्रीमती एस. महालक्ष्मी द्वारा प्रस्तुत
- आर2 और आर3: जिला व सहायक कोषाधिकारी – श्री डी. सादिक राजा (अतिरिक्त सरकारी वकील) व श्री पी. थांबीदुरई (सरकारी अधिवक्ता) द्वारा प्रस्तुत
