रजिस्टर्ड बिक्री समझौते को ‘लोन सिक्योरिटी’ साबित करने के लिए मौखिक साक्ष्य दे सकते हैं; साक्ष्य अधिनियम की धारा 91, 92 बाधा नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक रजिस्टर्ड दस्तावेज़ की “वास्तविक प्रकृति” (true nature) का पता लगाने के लिए मौखिक साक्ष्य (oral evidence) स्वीकार्य हैं। हाईकोर्ट ने माना कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 91 और 92, किसी पक्ष को यह साबित करने से नहीं रोकती कि बिक्री समझौता (Sale Agreement) के रूप में दिखाया गया दस्तावेज़, वास्तव में, एक ऋण लेनदेन (loan transaction) के लिए सुरक्षा (security) के तौर पर निष्पादित (executed) किया गया था।

न्यायमूर्ति आर. सक्तिवेल (Justice R. Sakthivel) ने एक अपील (A.S.No.279 of 2017) की सुनवाई करते हुए, बिक्री समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन (specific performance) की मांग को अस्वीकार करने के निचली अदालत (Trial Court) के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि, हाईकोर्ट ने अंतिम डिक्री को संशोधित (modify) करते हुए वादी (plaintiff) को 10,00,000/- रुपये की राशि वापस (refund) करने का आदेश दिया, क्योंकि कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि उक्त समझौता इसी ऋण राशि के लिए एक ‘सुरक्षा’ के तौर पर किया गया था।

यह अपील वादी के. गणेश (appellant/plaintiff) द्वारा प्रतिवादी सुश्री एस. सेल्वी (respondent/defendant) के खिलाफ दायर की गई थी। इसमें इरोड की दूसरी अतिरिक्त जिला अदालत के 28 मार्च, 2017 के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसने वादी के मूल मुकदमे (O.S.No.221/2014) को खारिज कर दिया था।

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मामले की पृष्ठभूमि

वादी के. गणेश ने प्रतिवादी एस. सेल्वी के स्वामित्व वाली संपत्ति के लिए 2 जुलाई 2014 को हुए एक रजिस्टर्ड बिक्री समझौते (Ex-A.1) के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मूल मुकदमा दायर किया था। संपत्ति का कुल बिक्री मूल्य (sale consideration) 15,00,000/- रुपये तय हुआ था, जिसमें से वादी ने समझौते की तारीख पर 10,00,000/- रुपये बतौर एडवांस (advance) भुगतान करने का दावा किया था।

इसके विपरीत, प्रतिवादी ने अपने लिखित बयान में, बिक्री समझौते (Ex-A.1) पर हस्ताक्षर करने (execution) की बात तो स्वीकार की, लेकिन इसकी प्रकृति (nature) से इनकार किया। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि यह दस्तावेज़ “बिक्री समझौते की आड़ में एक ऋण समझौता” (a loan agreement in the guise of Sale Agreement) था।

प्रतिवादी के अनुसार, उनके पति का वादी के साथ पहले से ऋण का लेन-देन था, और वादी पर एक पेशेवर साहूकार (professional money lender) होने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि वादी द्वारा 1 जुलाई 2014 को (समझौते से ठीक एक दिन पहले) ऋण के संबंध में एक पुलिस शिकायत (Ex-B.8) दर्ज कराई गई थी। इसके बाद, उसी शाम एक ‘पंचायत’ बुलाई गई, और उस समझौते के अनुसार, अगले दिन (2 जुलाई 2014) को यह बिक्री समझौता केवल बकाया ऋण के लिए ‘सुरक्षा’ के तौर पर निष्पादित किया गया था, जो उनके अनुसार 6,00,000/- रुपये था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि संपत्ति का मूल्य 1.5 करोड़ रुपये से अधिक था।

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निचली अदालत ने प्रतिवादी की दलीलों को स्वीकार कर लिया, यह पाया कि वादी 10,00,000/- रुपये के एडवांस भुगतान को साबित करने में विफल रहा, और यह माना कि समझौता “बिक्री के इरादे से नहीं” किया गया था। निचली अदालत ने वादी के मुकदमे को पूरी तरह से खारिज कर दिया, जिसमें विशिष्ट प्रदर्शन और रिफंड की वैकल्पिक राहत, दोनों को अस्वीकार कर दिया गया।

हाईकोर्ट में दलीलें

वादी/अपीलकर्ता की ओर से सुश्री वी. श्रीमती ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने गलती की थी। उनकी मुख्य दलील यह थी कि Ex-A.1 एक रजिस्टर्ड दस्तावेज़ होने के कारण, साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 91 और 92 के तहत, प्रतिवादी को इसके विपरीत मौखिक साक्ष्य पेश करने से रोकता है।

प्रतिवादी की ओर से श्री आर. भरणीधरन ने दोहराया कि दस्तावेज़ पुलिस शिकायत (Ex-B.8) और बाद की पंचायत के बाद सुरक्षा के रूप में निष्पादित किया गया था। यह तर्क दिया गया कि वादी 10,00,000/- रुपये नकद में भुगतान करने की अपनी “वित्तीय क्षमता” (wherewithal) को साबित करने में विफल रहा।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष

न्यायमूर्ति आर. सक्तिवेल ने प्रतिवादी के साक्ष्य, विशेष रूप से आरटीआई के माध्यम से प्राप्त पुलिस शिकायत (Ex-B.8) को “महत्वपूर्ण” (critical) पाया। उस शिकायत में, जो 1 जुलाई 2014 (बिक्री समझौते से एक दिन पहले) की थी, वादी ने स्वयं आरोप लगाया था कि प्रतिवादी के पति पर “लाखों का कर्ज” (lakhs in loan) है और उसके (वादी) पास “कोई ऋण / सुरक्षा दस्तावेज़ नहीं” (no loan / security document) था।

कोर्ट ने नोट किया कि वादी ने 15 जुलाई 2014 को यह कहते हुए शिकायत वापस ले ली कि एक ‘पंचायत’ हो गई है। 2 जुलाई 2014 को शिकायत के तुरंत बाद बिक्री समझौते का निष्पादन महत्वपूर्ण माना गया। कोर्ट ने टिप्पणी की: “यह कोर्ट आश्चर्यचकित है कि क्या ऐसा आचरण सामान्य मानवीय आचरण के अनुरूप होगा। क्या कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में बिक्री समझौता करेगा, जिसने ठीक एक दिन पहले उसके या उसके पति/पत्नी के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की हो? आदर्श रूप से, कोई भी विवेकशील व्यक्ति (prudent person) ऐसा नहीं करेगा।”

कोर्ट ने 10,00,000/- रुपये के एडवांस भुगतान के संबंध में वादी के साक्ष्यों का भी विश्लेषण किया और उन्हें “विरोधाभासी” (contradictory) और “अप्रमाणित” (unproven) पाया।

  • P.W.2 (थांगवेलु, एक गवाह) ने “गवाही दी कि उसने पैसे का कोई लेन-देन नहीं देखा।”
  • P.W.3 (मुरुगबूपति) ने उस स्थान के बारे में “विरोधाभासी” सबूत दिए जहां कथित तौर पर एडवांस का भुगतान किया गया था (दस्तावेज़ लेखक का कार्यालय बनाम उप-पंजीयक कार्यालय)।
  • P.W.4 (दस्तावेज़ लेखक) ने “गवाही दी कि उसकी उपस्थिति में कोई एडवांस भुगतान नहीं किया गया था।”
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कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “इस प्रकार, बिक्री समझौते के तहत प्रतिफल (passing of consideration) को साबित करने के लिए कोई संतोषजनक साक्ष्य नहीं है।” कोर्ट ने माना कि बचाव पक्ष का यह सिद्धांत कि समझौता “ऋण लेनदेन के लिए सुरक्षा” था, “संभावित” (probable) है।

वादी की मुख्य कानूनी चुनौती (धारा 91 और 92) को संबोधित करते हुए, हाईकोर्ट ने माना कि यह रोक (bar) “पूर्ण नहीं” (not absolute) है। सुप्रीम कोर्ट के आर. जानकीरमन बनाम राज्य (2006) 1 SCC 697 के फैसले पर भरोसा करते हुए, कोर्ट ने पुष्टि की कि यह रोक एक अनुबंध की शर्तों (terms) का खंडन करने पर लागू होती है, “न कि खुद अनुबंध को अस्वीकृत करने” (not to disprove the contract itself) या “यह साबित करने के लिए कि दस्तावेज़ पर अमल करने का इरादा नहीं था।”

सुप्रीम कोर्ट के गंगाबाई बनाम छबूबाई (1982) के फैसले का हवाला देते हुए, निर्णय में कहा गया कि यह रोक “तब आकर्षित नहीं होती जब एक पक्ष का मामला यह हो कि दस्तावेज़ में दर्ज लेन-देन पर पार्टियों के बीच कभी भी अमल करने का इरादा नहीं था… और यह कि दस्तावेज़ एक ‘दिखावा’ (sham) है।”

इसलिए, हाईकोर्ट ने पाया: “Ex-A.1 – बिक्री समझौता बिक्री के इरादे से नहीं, बल्कि बिक्री समझौते की आड़ में, बिना किसी प्रतिफल के भुगतान के, एक ऋण लेनदेन के लिए सुरक्षा के तौर पर था।” इसके परिणामस्वरूप विशिष्ट प्रदर्शन के दावे को खारिज कर दिया गया।

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अंतिम निर्णय

विशिष्ट प्रदर्शन के दावे को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति सक्तिवेल ने माना कि निचली अदालत ने “पैसे वापसी की वैकल्पिक राहत (alternate relief) देने में विफल” रही।

कोर्ट ने तर्क दिया कि यद्यपि दस्तावेज़ की प्रकृति (nature) को चुनौती दी जा सकती है, लेकिन शर्तों (terms) को नहीं—विशेष रूप से 10,00,000/- रुपये की राशि जिसे ‘एडवांस’ के रूप में उल्लेख किया गया था, वह रजिस्टर्ड दस्तावेज़ में लिखी थी। कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी “न तो यह अस्वीकृत कर पाई कि ऋण राशि 10,00,000/- रुपये थी… और न ही उसने भुगतान चुकाने (discharge plea) की दलील को संतोषजनक ढंग से साबित किया।”

यह देखते हुए कि “अगर वास्तव में प्रतिवादी या उसके पति पर केवल 6,00,000/- रुपये बकाया थे, तो पार्टियों के पास 10,00,000/- रुपये एडवांस राशि के रूप में लिखने का कोई कारण नहीं था,” कोर्ट ने माना कि “प्रतिवादी को वादी की कीमत पर अनुचित रूप से समृद्ध (unjustly enriched) नहीं होने दिया जा सकता।”

अपील को “आंशिक रूप से स्वीकार” (partly allowed) किया गया, और निचली अदालत के फैसले को संशोधित किया गया। अंतिम आदेश इस प्रकार हैं:

  1. विशिष्ट प्रदर्शन (specific performance) और निषेधाज्ञा (injunction) के लिए मुकदमा खारिज किया जाता है।
  2. “धन वापसी की वैकल्पिक राहत” (alternate relief of return of money) प्रदान की जाती है।
  3. वादी के पक्ष में 10,00,000/- (दस लाख रुपये) की राशि, मुकदमा दायर करने की तारीख से वसूली की तारीख तक 7.5% प्रति वर्ष (साधारण ब्याज) के साथ, एक मनी डिक्री (Money Decree) के रूप में पारित की जाती है।
  4. वादी को उक्त राशि और ब्याज की वसूली करने में सक्षम बनाने के लिए वाद संपत्ति (suit property) पर एक चार्ज (charge) बनाया जाता है।

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