मद्रास हाईकोर्ट ने वेतन कटौती की सज़ा को रद्द किया, जो स्थायी आदेशों में शामिल नहीं थी

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक बस कंडक्टर की वेतन कटौती से संबंधित अनुशासनात्मक आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें उसे न्यूनतम वेतन स्तर पर लाकर स्थायी प्रभाव के साथ वेतन निर्धारण किया गया था। न्यायालय ने कहा कि ऐसी सजा तमिलनाडु स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (कुंभकोणम) लिमिटेड (TNSTC) के संबंधित स्थायी आदेशों के अंतर्गत अनुमत नहीं है। कोर्ट ने इन आदेशों को अनुचित और अवैध करार देते हुए, याचिकाकर्ता को सेवा समाप्ति पर मिलने वाले सभी लाभ और अन्य संबंधित लाभ दो महीने के भीतर देने का निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला के. राजेन्द्रन नामक एक बस कंडक्टर से जुड़ा है, जो वर्ष 1992 से TNSTC में कार्यरत थे। उन पर यह आरोप था कि उन्होंने 5 जुलाई 2019 को एक यात्री को टिकट जारी करते समय ₹8 का गबन किया।

6 जुलाई 2019 को निगम द्वारा एक आरोप पत्र जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता ने एक यात्री से ₹20 प्राप्त किए, लेकिन केवल ₹10 का टिकट जारी किया और ₹2 वापस किए, जिससे निगम को ₹8 का नुकसान हुआ। उसी दिन उन्हें निलंबित कर दिया गया। बाद में उन्हें बिना वेतन और बिना निलंबन अवधि के लिए निर्वाह भत्ते के बहाल किया गया।

अनुशासनात्मक जांच नोटिस जारी किए गए और जांच 4 दिसंबर 2019 को रिपोर्ट के साथ समाप्त हुई। इसके बाद, दूसरे प्रतिवादी ने 11 मार्च 2020 को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें याचिकाकर्ता के वेतन को न्यूनतम स्तर पर लाने का प्रस्ताव किया गया, वह भी स्थायी प्रभाव के साथ। 15 जून 2020 को अंतिम आदेश पारित किया गया, जिसमें यह सज़ा दी गई और निलंबन अवधि को अवकाश के रूप में माना गया। इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता की अपील को पहले प्रतिवादी ने 20 नवंबर 2020 को खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील श्री टी. वीराकुमार ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को न तो जांच रिपोर्ट दी गई और न ही कारण बताओ नोटिस या जांच निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया देने का पर्याप्त अवसर मिला। साथ ही, यह दलील भी दी गई कि जो सज़ा दी गई, वह निगम के स्थायी आदेशों के अंतर्गत नहीं आती और यह एक ही गलती के लिए एक से अधिक सज़ाओं के बराबर है।

याचिकाकर्ता ने अपने समर्थन में दो निर्णयों का हवाला दिया:

  1. एम. शंकर बनाम TNSTC, विल्लुपुरम (WP No. 6174 of 2009, आदेश दिनांक 23.03.2018), जिसमें ऐसी ही सज़ा को स्थायी आदेशों के दायरे से बाहर माना गया था।
  2. एम. सेल्वदुरई बनाम TNSTC, कुंभकोणम (WP(MD) No. 3039 of 2020, आदेश दिनांक 16.03.2020), जिसमें उपरोक्त निर्णय के आधार पर मूल वेतन में पाँच स्तर की कटौती को रद्द कर दिया गया था।
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प्रतिवादियों की दलीलें

प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को पर्याप्त अवसर दिया गया और उनके आचरण की गंभीरता को देखते हुए दी गई सज़ा उदार थी।

कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने यह देखा कि याचिकाकर्ता को अंतिम आदेश पारित होने से पहले जांच रिपोर्ट नहीं दी गई थी। भले ही उन्होंने जांच सुनवाई में भाग लिया हो, लेकिन जो सज़ा दी गई, वह स्थायी आदेशों में निहित नहीं थी और इसलिए उसका कोई कानूनी आधार नहीं था।

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि स्थायी आदेशों में वेतन कटौती सज़ा के रूप में शामिल नहीं है और इस तरह की सज़ा “कानूनी अधिकार और क्षेत्राधिकार के बिना दी गई है और अत्यधिक है।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रशिक्षण, स्थानांतरण और अवकाश समायोजन को सज़ा के रूप में नहीं लिया जा सकता।

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पूर्व निर्णयों का उल्लेख करते हुए और सज़ा की प्रासंगिकता की समीक्षा करते हुए, कोर्ट ने निष्कर्ष दिया:

“प्रतिवादी निगम द्वारा न्यूनतम वेतन स्तर तक स्थायी प्रभाव के साथ वेतन घटाने और निलंबन अवधि को अवकाश अवधि मानने की कार्यवाही, जो कि निगम के स्थायी आदेशों के अंतर्गत नहीं आती, अनुचित और अवैध प्रतीत होती है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।”

इस प्रकार, 15 जून 2020 और 20 नवंबर 2020 के आदेशों को रद्द कर दिया गया और प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया कि वे याचिकाकर्ता को सभी सेवा समाप्ति संबंधी लाभ और अन्य लाभ दो महीने के भीतर प्रदान करें।

मामले का शीर्षक: के. राजेन्द्रन बनाम प्रबंध निदेशक, TNSTC (कुंभकोणम) लिमिटेड एवं अन्य
मामला संख्या: WP(MD) No. 28061 of 2022
पीठ: न्यायमूर्ति शमीम अहमद

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