राष्ट्रीय विकास के लिए लिए यदि धार्मिक स्थानों पर प्रभाव पड़ता है, तो भगवान हमें क्षमा करेंगे: मद्रास हाई कोर्ट

मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में, मद्रास हाई कोर्ट ने चेन्नई मेट्रो रेल लिमिटेड (CMRL) को दो प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों के पास की जमीन अधिग्रहण करने की अनुमति दे दी, जिससे एक नए मेट्रो स्टेशन का निर्माण किया जा सके। न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश द्वारा दिए गए इस निर्णय में परियोजना की सार्वजनिक उपयोगिता को धार्मिक भावनाओं से अधिक महत्वपूर्ण बताया गया।

यह मामला ‘आलयम कापोम फाउंडेशन’ द्वारा दायर एक याचिका से उत्पन्न हुआ, जो मंदिर भक्तों का प्रतिनिधित्व कर रही थी। इस याचिका में रथिना विनायक मंदिर और दुर्गा अम्मन मंदिर के पास की जमीन के अधिग्रहण को चुनौती दी गई थी। हालांकि, न्यायमूर्ति वेंकटेश ने स्पष्ट किया कि धार्मिक संस्थाओं के स्वामित्व वाली भूमि को राज्य सरकार की ‘एमिनेंट डोमेन’ (सार्वजनिक हित में संपत्ति के अधिग्रहण का अधिकार) शक्तियों से छूट नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, “कानून स्पष्ट रूप से स्थापित है कि धार्मिक संस्थानों की भूमि का अधिग्रहण सरकार द्वारा किया जा सकता है, और यह संविधान के अनुच्छेद 25 या 26 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता।”

न्यायमूर्ति वेंकटेश ने इस मामले में केरल हाई कोर्ट के एक पूर्व निर्णय (बालकृष्ण पिल्लई बनाम भारत संघ) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि “राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास के लिए यदि धार्मिक संस्थानों पर प्रभाव पड़ता है, तो भगवान हमें क्षमा करेंगे।” इसी तर्ज पर, उन्होंने कहा कि मेट्रो स्टेशन का विकास अंततः मंदिर के भक्तों और आम जनता के लिए फायदेमंद होगा।

बीमा कंपनी के भूमि अधिग्रहण का विरोध

मूल प्रस्ताव का मंदिर भक्तों ने विरोध किया, जिससे कोर्ट ने एक वैकल्पिक साइट का निरीक्षण किया। इसके बाद CMRL ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के मुख्यालय की जमीन को अधिग्रहित करने का सुझाव दिया। हालांकि, इंश्योरेंस कंपनी ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि उसने अपनी संपत्ति के विकास में भारी निवेश किया था और CMRL द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

न्यायमूर्ति वेंकटेश ने बीमा कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि “CMRL और राज्य प्राधिकरणों द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन किया गया है।” अदालत ने यह भी बताया कि CMRL द्वारा पहले ही कंपनी को वहां मुख्यालय बनाने की अनुमति दी गई थी, और अब उसी भूमि को अधिग्रहण करना अनुचित होगा।

अंततः, कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी की भूमि अधिग्रहण अधिसूचना को रद्द कर दिया और CMRL को अपने मूल प्रस्ताव पर लौटने की अनुमति दी, जिसमें मंदिरों को हटाए बिना मेट्रो स्टेशन का निर्माण किया जा सकता था। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि निर्माण कार्य के दौरान केवल मंदिर के गोपुरम (मुख्य द्वार) और एक देवता की अस्थायी रूप से दूसरी जगह शिफ्टिंग की आवश्यकता होगी, जिसे बाद में पुनः स्थापित किया जाएगा।

स्वामी विवेकानंद के विचारों का संदर्भ

न्यायमूर्ति वेंकटेश ने इस मामले पर सुनवाई समाप्त करते हुए स्वामी विवेकानंद का हवाला दिया और कहा, “धर्म का सर्वोच्च उद्देश्य मानवता को एकजुट करना और उसकी सेवा करना है।” उन्होंने सभी पक्षों से अपील की कि वे इस परियोजना के व्यापक लाभों को समझें।

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इस मामले में यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता विजय नारायण ने किया, जबकि तमिलनाडु सरकार और CMRL की ओर से महाधिवक्ता पी. एस. रामन ने पैरवी की।

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