जातिगत पक्षपात के आरोपों पर मद्रास हाईकोर्ट सख्त वकील से मांगा स्पष्टीकरण: मामला मुख्य न्यायाधीश को सौंपा गया

मद्रास हाईकोर्ट में सोमवार को एक असाधारण घटनाक्रम सामने आया जब न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने अधिवक्ता वंचिनाथन से सीधे तौर पर उनके उन बयानों को लेकर जवाब तलब किया जिनमें उन्होंने न्यायिक निर्णयों में जाति और संप्रदाय के आधार पर पक्षपात के आरोप लगाए थे। यह सुनवाई न्यायमूर्ति स्वामीनाथन और न्यायमूर्ति के. राजशेखर की पीठ के समक्ष हुई।

सुनवाई के दौरान जब वंचिनाथन ने मौखिक रूप से जवाब देने से इनकार किया और कोर्ट से लिखित आदेश पारित करने को कहा, तब न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने तीखी टिप्पणी की—

“यू आर ए कॉमेडी पीस… मुझे नहीं पता कि आप लोगों को किसने क्रांतिकारी कहा। आप सब कॉमेडी पीसेज़ हैं।”

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न्यायिक आलोचना बनाम जातिगत आरोप

न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने स्पष्ट किया कि किसी निर्णय की कठोर आलोचना स्वीकार्य है, लेकिन जातिगत पूर्वाग्रह जैसे आरोप एक गंभीर सीमा लांघते हैं।

“श्रीमान वंचिनाथन, मुझे आपके द्वारा मेरे निर्णयों की कड़ी आलोचना से कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जब आप जातिगत पक्षपात का आरोप लगाते हैं, तो मामला बिल्कुल अलग हो जाता है।”

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कोर्ट ने एक वीडियो इंटरव्यू का हवाला दिया जिसमें वंचिनाथन ने दावा किया था कि कोर्ट ने एक वरिष्ठ दलित वकील को निशाना बनाया जबकि एक ब्राह्मण वकील को बख्श दिया गया। इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि इस तरह के सामान्यीकृत और बिना आधार वाले बयान गंभीर चिंता का विषय हैं।

“चार साल से आप मेरी निंदा कर रहे हैं। मैंने कभी आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। हम प्रक्रिया के नियमों को समझते हैं। हम मूर्ख नहीं हैं। हम इस मामले को मुख्य न्यायाधीश या उपयुक्त पीठ के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। पूरा ईकोसिस्टम हमारे खिलाफ खड़ा हो गया है—हमें सब पता है। लेकिन हम डरने या झुकने वाले नहीं हैं। न्यायिक स्वतंत्रता सर्वोच्च है।”

कोई अवमानना नहीं, केवल स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास

कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह कार्यवाही अवमानना की नहीं है, बल्कि केवल वंचिनाथन को यह स्पष्ट करने का अवसर देने के लिए है कि क्या वे अपने आरोपों पर अब भी कायम हैं।

आदेश में दर्ज किया गया कि वकील 25 जुलाई और 28 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित हुए। वंचिनाथन ने तर्क दिया कि यह कार्यवाही उनके द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को की गई शिकायत से जुड़ी है—जिसे कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया।

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“हम समझ नहीं पा रहे कि किस आधार पर इस कोर्ट के खिलाफ ऐसे आरोप लगाए गए हैं… हम एक बार फिर स्पष्ट करते हैं कि यह कार्यवाही उस शिकायत से कोई संबंध नहीं रखती।”

“आपने दो बातें मान लीं जिनका कोई आधार नहीं है। पहली, कि यह कार्यवाही आपकी उस शिकायत से जुड़ी है जो आपने माननीय मुख्य न्यायाधीश को भेजी। दूसरी, कि हमने शुक्रवार तक कोई अवमानना की कार्यवाही शुरू नहीं की थी। हम तो सिर्फ आपकी स्थिति स्पष्ट करना चाहते हैं—क्या आप जातिगत और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के आरोप पर कायम हैं।”

सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का पत्र और कोर्ट की प्रतिक्रिया

इस बीच, मद्रास हाईकोर्ट के आठ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों—न्यायमूर्ति के. चंद्रू, न्यायमूर्ति डी. हरिपरंथमन, न्यायमूर्ति एस.एस. सुंदर, न्यायमूर्ति एस. विमला आदि—ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना था कि न्यायिक आचरण से जुड़ी शिकायतों को संबंधित न्यायाधीश के बजाय संस्थागत रूप से मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए।

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इस पर कोर्ट ने कहा—

“जब मामला विचाराधीन है, उस दौरान कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों द्वारा सार्वजनिक रूप से राय देना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।”

न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने विशेष रूप से न्यायमूर्ति एस.एस. सुंदर द्वारा पत्र पर हस्ताक्षर किए जाने पर निराशा जताई।

मामला मुख्य न्यायाधीश को सौंपा गया

सुनवाई के अंत में पीठ ने आदेश दिया कि यह मामला उचित निर्देशों के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।

जैसे ही कार्यवाही समाप्त हुई, न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने कहा—

“मैंने आपको कायर कहा था, इसका मुझे पछतावा था। अब नहीं है।”

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