मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने एक फैसले में अदालत की ही एक खंडपीठ की आलोचना की है। यह आलोचना “ग्राम नथम” जमीन के स्वामित्व से जुड़े एक सदी पुराने न्यायिक परंपरा की अनदेखी के लिए की गई है। उन्होंने अपने फैसले में वर्ष 2024 के एस. अन्बनाथन बनाम जिला कलेक्टर मामले में खंडपीठ (न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति के. राजशेखर) के निर्णय को per incuriam (कानून की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण) घोषित किया।
यह आदेश चार रिट याचिकाओं – W.P. No. 4936, 6015, 6514 और 6795 – पर पारित किया गया, जिन्हें एन.एस. कृष्णमूर्ति, मरुथमुथु, वी. राजेन्द्रन और एस. सुब्रमणि ने दाखिल किया था। सभी याचिकाएं “ग्राम नथम” यानी गांव की आवासीय भूमि पर पट्टा (स्वामित्व अधिकार) प्राप्त करने से संबंधित थीं।
मामले की पृष्ठभूमि
“ग्राम नथम” वह भूमि होती है जो गांव में आवास के लिए आरक्षित होती है और जिसे राजस्व कर से मुक्त रखा गया है। याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि उन्होंने यह भूमि दशकों से कब्जे में रखी है और राज्य सरकार द्वारा उन्हें पट्टा न देने का कारण या तो पुराने राजस्व आदेश (RSO) हैं या फिर तमिलनाडु लैंड एनक्रोचमेंट एक्ट, 1905 के अंतर्गत सरकारी स्वामित्व का दावा।

चारों याचिकाओं का संक्षेप:
- W.P. No. 4936/2025: एन.एस. कृष्णमूर्ति ने 1951 के बंटवारे के आधार पर 180 वर्गमीटर और 920 वर्गमीटर की जमीन के लिए पट्टा मांगा, जिसे तहसीलदार, थेनकनिकोट्टई ने 31 दिसंबर 2024 को खारिज कर दिया था।
- W.P. No. 6015/2025: मरुथमुथु ने तिरुपुर जिले के कड़ाथूर गांव में 30 वर्षों से निवासित भूमि पर पट्टा देने के लिए निर्देश की मांग की थी।
- W.P. No. 6514/2025: वी. राजेन्द्रन ने अपने परदादा से प्राप्त 2.75 आरे भूमि पर पट्टा हेतु कार्रवाई की मांग की थी।
- W.P. No. 6795/2025: एस. सुब्रमणि ने विवाह के बाद से निवासित 3 सेंट जमीन के लिए पट्टा की मांग की, जो उनकी सास के पट्टा वाली भूमि के पास स्थित है।
राज्य के अधिकारियों ने दावा किया कि सभी ग्राम नथम भूमि सरकार की मानी जाती हैं जब तक कि विशेष रूप से छूट न दी गई हो और केवल कब्जे से स्वामित्व नहीं माना जा सकता।
मुख्य कानूनी प्रश्न
- ग्राम नथम का स्वामित्व – क्या लंबे समय से कब्जे में रही भूमि पर स्वामित्व का अधिकार होता है या वह सरकार की होती है?
- न्यायिक परंपरा और ‘Stare Decisis’ का पालन – क्या खंडपीठ 2024 के निर्णय में एक सदी पुराने फैसलों से हट सकती है?
अदालत के प्रमुख निष्कर्ष और निर्देश
- ग्राम नथम पर कब्जाधारियों का अधिकार मान्य: न्यायालय ने दोहराया कि जिन ग्राम नथम जमीनों पर कब्जा हो और राज्य ने इसे स्थानांतरण के माध्यम से मान्यता दी हो, वह ज़मीन निजी संपत्ति मानी जाएगी (पैरा 48(i))।
- खंडपीठ की आलोचना: न्यायमूर्ति वेंकटेश ने कहा कि खंडपीठ ने “100 वर्षों की न्यायिक परंपरा की अनदेखी कर न्यायिक अराजकता को जन्म दिया।” उन्होंने कहा कि “खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट की स्थापित विधिक व्यवस्था की बुनियादी बातों को ही नज़रअंदाज़ कर दिया” (पैरा 55(s))।
- Per Incuriam घोषित: अदालत ने कहा कि अन्बनाथन निर्णय पूर्ववर्ती खंडपीठों के निर्णयों की उपेक्षा करता है, इसलिए यह per incuriam है और बाध्यकारी नहीं है (पैरा 46)।
- 2015 के रद्द सर्कुलर को पुनर्जीवित करने के निर्देश की निंदा: अदालत ने कहा कि यह “अभूतपूर्व” और “न्यायालय की एकरूपता के सिद्धांत के विरुद्ध” है (पैरा 60(ac)-(ad))।
- Stare Decisis का महत्व: सुप्रीम कोर्ट के Waman Rao (1981) मामले का हवाला देते हुए कहा गया कि एक बार कोई निर्णय दे दिया गया हो, तो केवल इसलिए उसे नकारा नहीं जा सकता कि वह किस कारण से दिया गया था (पैरा 56(v))।
निर्णय और आदेश
- W.P. No. 4936: तहसीलदार के आदेश को रद्द किया गया और 12 हफ्तों में कब्जे की पुष्टि के बाद पट्टा जारी करने का निर्देश दिया गया।
- W.P. Nos. 6015, 6514, 6795: तहसीलदारों को 12 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर निर्णय लेकर पट्टा जारी करने का आदेश दिया गया।
राज्य को दिए गए निर्देश
राज्य के भू-प्रशासन आयुक्त को निर्देश दिया गया कि वह 4 सप्ताह के भीतर नया सर्कुलर जारी करें, जिसमें अदालत की इस बात की पुष्टि हो कि:
- कब्जाधारित ग्राम नथम व्यक्तिगत संपत्ति है।
- बिना कब्जे वाली ग्राम नथम सरकार के अधीन है और सार्वजनिक उद्देश्य के लिए उपयोग की जा सकती है।
यदि पुराना 2015 का सर्कुलर पुनर्जीवित किया गया, तो अवमानना की कार्यवाही की चेतावनी दी गई।
प्रतिनिधित्व
- याचिकाकर्ता की ओर से:
- एन. मनोकरण (W.P. No. 4936),
- ए. पार्थसारथी (W.P. No. 6015),
- आर. सतीशकुमार (W.P. No. 6514),
- विजयकुमारी नटराजन (W.P. No. 6795)।
- एन. मनोकरण (W.P. No. 4936),
- प्रतिवादी की ओर से:
- एडविन प्रभाकर, राज्य सरकार के वकील,
- ए. सेल्वेन्द्रन, विशेष सरकारी वकील।
- एडविन प्रभाकर, राज्य सरकार के वकील,