मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि पत्नी के पास पर्याप्त स्वतंत्र आय है और वह मूल्यवान संपत्तियों की मालिक है, तो वह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत अपने पति से अंतरिम भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है। न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी ने एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पति को पत्नी को ₹30,000 प्रति माह अंतरिम गुजारा-भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान का उद्देश्य उस जीवनसाथी की मदद करना है जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, न कि किसी संपन्न व्यक्ति की आय को और बढ़ाना।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला पति द्वारा दायर एक सिविल रिवीजन याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट पहुंचा, जिसमें चेन्नई की IV एडिशनल प्रिंसिपल फैमिली कोर्ट के 27 जनवरी, 2023 के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। पति ने तलाक के लिए अर्जी दी थी। इस कार्यवाही के दौरान, पत्नी ने दो आवेदन दायर किए: एक अपने और अपने बेटे के लिए अंतरिम भरण-पोषण के लिए, और दूसरा बेटे के शैक्षिक खर्चों के लिए।
फैमिली कोर्ट ने पति को पत्नी और बेटे दोनों को ₹30,000 प्रति माह देने का निर्देश दिया था। पति ने अपने बेटे के गुजारा-भत्ता या उसकी NEET कोचिंग के लिए लगभग ₹2.77 लाख की फीस के भुगतान का विरोध नहीं किया। उसकी चुनौती केवल पत्नी को दिए गए अंतरिम गुजारा-भत्ता के खिलाफ थी।

पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता-पति के तर्क:
पति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि पत्नी न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि “संपन्न” भी है। उन्होंने बताया कि वह एक निजी लिमिटेड कंपनी में निदेशक है और उसे पर्याप्त लाभांश मिलता है। यह भी कहा गया कि पत्नी का आचरण दुर्भावनापूर्ण था, क्योंकि उसने अपने भरण-पोषण के दावे का आधार बनाने के लिए खुद को लाभांश जारी करने से रोकने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) से संपर्क किया था।
वकील ने आगे कहा कि पत्नी के पास करोड़ों की मूल्यवान संपत्तियां हैं और उसने अपनी संपत्ति को छिपाने के लिए कार्यवाही के दौरान एक संपत्ति अपने पिता के नाम कर दी थी।
प्रतिवादी-पत्नी के तर्क:
पत्नी के वकील ने इसका खंडन करते हुए कहा कि उसे मिला लाभांश पूरी तरह से बेटे की शिक्षा पर खर्च हो गया था। उन्होंने कहा कि स्कैन सेंटर से उसकी कोई नियमित आय नहीं थी, जिसकी पुष्टि 2020 से 2022 तक के उसके आयकर रिटर्न से होती है।
संपत्ति के निपटान के संबंध में, वकील ने समझाया कि संपत्ति मूल रूप से उसकी मां की थी और उसके पिता के नाम पर स्थानांतरित कर दी गई थी क्योंकि वह “वास्तविक मालिक” थे, जिन्होंने इसे खरीदने के लिए धन उपलब्ध कराया था।
कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी ने दलीलों पर विचार करने के बाद हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के उद्देश्य पर गौर किया। कोर्ट ने कहा, “अंतरिम गुजारा-भत्ता देने का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि पत्नी के पास खुद को बनाए रखने के लिए पर्याप्त आय हो और यह जीविका केवल जीवित रहने के लिए नहीं है, बल्कि उसी आरामदायक जीवन शैली के अनुरूप होनी चाहिए जिसकी वह आदी थी।”
कोर्ट ने पाया कि यह निर्विवाद है कि पत्नी एक कंपनी में निदेशक थी और उसे पर्याप्त लाभांश मिला था। सबूतों से पता चला कि उसे वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए ₹15,18,750, 2022-23 के लिए ₹16,20,000 और 2023-24 के लिए ₹16,20,000 का शुद्ध भुगतान प्राप्त हुआ।
कोर्ट ने कार्यवाही के दौरान एक मूल्यवान संपत्ति को अपने पिता के नाम पर निपटाने के लिए पत्नी के स्पष्टीकरण को प्रामाणिक नहीं माना।
कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पति ने स्वेच्छा से अपने बेटे के शैक्षिक खर्चों को वहन किया और उसे दिए गए ₹30,000 के मासिक गुजारा-भत्ता को चुनौती नहीं दी। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की पर्याप्त आय और संपत्ति के स्वामित्व के सबूतों पर ठीक से विचार किए बिना उसे गुजारा-भत्ता देकर गलती की थी।
फैसला
हाईकोर्ट ने सिविल रिवीजन याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। फैमिली कोर्ट के 27 जनवरी, 2023 के आदेश को विशेष रूप से पत्नी को दिए गए अंतरिम गुजारा-भत्ता के संबंध में रद्द कर दिया गया। बेटे को दिया जाने वाला गुजारा-भत्ता प्रभावी रहेगा।