मद्रास हाईकोर्ट ने अदालत के आदेशों की अवहेलना करने पर वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अंशुल मिश्रा को एक महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई है। न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन की एकल पीठ ने यह सजा सुनाते हुए अधिकारी को दो याचिकाकर्ताओं—भाई-बहन आर. ललिताम्बाई और के.एस. विश्वनाथन—को ₹25,000 का मुआवजा भी उनके वेतन से भुगतान करने का निर्देश दिया। हालांकि, अदालत ने सजा पर 30 दिनों की रोक लगाई है ताकि मिश्रा अपील दाखिल कर सकें।
अंशुल मिश्रा वर्तमान में तमिलनाडु अर्बन हैबिटेट डेवलपमेंट बोर्ड के प्रबंध निदेशक हैं और इस मामले से जुड़े समय (नवंबर 2023) में वे चेन्नई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (CMDA) के सदस्य सचिव थे। अदालत ने पाया कि उन्होंने नवंबर 2023 के आदेश का जानबूझकर उल्लंघन किया।
मूल विवाद 1983 में तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड द्वारा याचिकाकर्ताओं की 17 सेंट जमीन के अधिग्रहण को लेकर था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जमीन पर मकान तो बनाए गए, लेकिन उसका कभी उपयोग नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने नवंबर 2023 में CMDA को निर्देश दिया था कि वह इस मामले में निर्णय लेकर दो महीने के भीतर आदेश जारी करे, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर याचिकाकर्ताओं ने अगस्त 2024 में अदालत की अवमानना याचिका दायर की।
न्यायालय ने कड़े शब्दों में कहा, “अक्सर देखने में आता है कि गरीब और पीड़ित लोग जब अपनी जायज़ समस्याओं को लेकर प्रशासन के पास जाते हैं तो उन्हें कोई समाधान नहीं मिलता, और अंततः उन्हें संवैधानिक अदालतों का रुख करना पड़ता है। लेकिन जब अदालतें भी हस्तक्षेप करती हैं, तब भी संबंधित अधिकारी आदेशों का पालन नहीं करते या टालमटोल करते हैं।”
न्यायमूर्ति वेलमुरुगन ने कहा कि अदालत के आदेशों की अवहेलना कोई अकेला मामला नहीं है। “न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास इस बात पर टिका है कि अदालत के आदेशों का शीघ्र और प्रभावी ढंग से पालन होगा,” अदालत ने कहा। “लोक सेवा कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि जनता द्वारा अधिकारियों में रखा गया विश्वास है।”