इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ करने की मांग वाली याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह मुद्दा पहले ही State of U.P. & Ors. vs. Shiv Kumar Pathak & Ors., (2018) 12 SCC 595 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत किया जा चुका है। इसके साथ ही अदालत ने 6,402 याचिकाकर्ताओं पर ₹100 प्रति व्यक्ति की लागत लगाई, यह कहते हुए कि ये “विलासिता जैसे वाद” प्रतीत होते हैं।
मामला क्या था
हजारों याचिकाकर्ताओं ने ये याचिकाएं दाखिल की थीं जो कि शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) – प्राइमरी लेवल 2011 में सफल हुए थे। उक्त परीक्षा के परिणाम 25.11.2011, 30.11.2011 और 29.1.2015 को घोषित किए गए थे। इन याचिकाओं में मांग की गई थी कि—
- टीईटी परिणाम रद्द किए जाएं,
- ओएमआर शीट्स का पुनर्मूल्यांकन किया जाए,
- व्हाइटनर का प्रयोग करने वाले अभ्यर्थियों की उम्मीदवारी रद्द की जाए,
- और बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा 7.12.2012 को जारी विज्ञापन के तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए।
याचिकाकर्ताओं की दलील
वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा पेश याचिकाकर्ताओं की ओर से सिर्फ एक मुख्य मांग पर ज़ोर दिया गया—कि वर्ष 2012 के विज्ञापन के अनुसार चयन प्रक्रिया प्रारंभ की जाए। उन्होंने तर्क दिया कि Shiv Kumar Pathak मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय वर्ष 2012 के विज्ञापन के तहत चयन को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं करता।

राज्य सरकार की दलील
राज्य की ओर से अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाओं में उठाए गए सभी मुद्दों का निराकरण सुप्रीम कोर्ट द्वारा Shiv Kumar Pathak में पहले ही कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि 7.12.2012 के विज्ञापन के अंतर्गत कोई चयन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाई जा सकती और इसके लिए नया विज्ञापन आवश्यक है।
कोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रासंगिक अंशों को उद्धृत करते हुए कहा—
“…Shiv Kumar Pathak (supra) के अनुच्छेद 19 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को शेष रिक्तियों को नए विज्ञापन के माध्यम से भरने की छूट दी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि 7.12.2012 के विज्ञापन के तहत चयन आगे नहीं बढ़ेगा।”
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से मांगी गई राहत सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी निर्देशों के विरुद्ध है। साथ ही, टीईटी परिणाम की दोबारा जांच और अन्य संबंधित मुद्दों पर पहले ही निर्णय हो चुका है, जिन्हें फिर से नहीं उठाया जा सकता।
फैसला
अदालत ने सभी याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया—
“सभी याचिकाओं में कोई दम नहीं है, अतः इन्हें खारिज किया जाता है।”
साथ ही, अदालत ने यह टिप्पणी की कि—
“…ये वाद विलासिता जैसे प्रतीत होते हैं… अतः सभी याचिकाकर्ताओं को ₹100/- प्रत्येक बतौर लागत देना होगा।”
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि याचिकाओं के साथ दायर हलफनामों के अभिशपथकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि ₹100 प्रति याचिकाकर्ता की राशि एक सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में जमा की जाए। यदि भुगतान में चूक होती है तो पंजीयक जनरल इसकी वसूली सुनिश्चित करेंगे।