राम मनोहर लोहिया लॉ यूनिवर्सिटी व कैन फाउंडेशन के वेबिनार में देश के जाने माने वकील और न्यायाधीश मौजूद रहे। वेबिनार में “बेल और जेल नियम क्या अपवाद क्या” विषय पर जस्टिस अतुल श्रीधरन ने कहा कि एमपी में लोअर कोर्ट इतने दवाब में कार्य कर रही हैं कि सामान्य मामलों में भी जमानत नही देती ।
एक अपर न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत मंजूर कर ली तो जांच बैठा दी गई। यदि ऐसा होगा तो उनका आत्मविश्वास कितना कम हो जाएगा। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को स्वतंत्र नही किया,दखल देना बंद नही किया तो हाई कोर्ट को जिला कोर्ट के काम करने होंगे। हाई कोर्ट का मुख्य रूप से कार्य अपीलों को सुनना है लेकिन हाई कोर्ट में अधिकांश मामले जमानत के होते हैं।
अपनी बात को जारी रखते हुए जस्टिस श्रीधरन ने कहा कि हाई कोर्ट में 10 में से 8 मुकदमे जमानत के होते हैं। क्योंकि निचली अदालत जमानत के 80 फीसदी मामलों को खारिज कर देती है। जिला कोर्ट के जज अधिवक्ता से विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि आप हाई कोर्ट से अपील कर लीजिए।
मैं जमानत नही दे सकता। हाई कोर्ट में क्रिमिनल अपील ,पुनरीक्षण अपील नही सुनी जाती है कारण है कि हाई कोर्ट दिनभर जमानत के मामलों को सुनती है। 15-15 वर्ष जेल में रहने के बाद पक्षकार अपील वापस ले रहे हैं,क्योंकि हाई कोर्ट सुनवाई नही कर पा रहा है। जिला कोर्ट में फौजदारी के मामले धीरे धीरे खत्म होते जा रहे हैं। ट्रायल कोर्ट को स्वतंत्र करना होगा । बेल के मामले निचली अदालत में ही समाप्त हो जाए ऐसी व्यवस्था करनी होगी।
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लंबी दूरी तय करके अपील दायर करने आते लोग-
जस्टिस श्रीधरन ने अपनी बात को समाप्ति की और ले जाते हुए कहा कि प्रिंसिपल बेंच के दायरे में बुरहानपुर आता है। यदि कोई जमानत खारिज होती है तो अपील दायर करने 612 किमी दूर आना होता है। कोई आर्थिक तौर पर कमजोर हो तो उसके लिए यहाँ तक आना कितना खर्चीला काम होगा। उसके लिए न्याय पाना कितना कठिन होगा।