राजनीति में लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023 (जिसे महिला आरक्षण विधेयक भी कहा जाता है) पेश किया।
विधेयक का लक्ष्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं दोनों में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई आरक्षित करना है।
इसके अतिरिक्त, विधेयक में महिला आरक्षण श्रेणी के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पहले से आरक्षित सीटों को भी शामिल किया गया है। इस कदम से विधायी निकायों में हाशिए पर रहने वाले समुदायों के प्रतिनिधित्व को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
केंद्रीय कानून एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को लोकसभा में पेश किया।
यह ध्यान देने योग्य है कि आरक्षण अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद पहली जनगणना में परिसीमन अभ्यास आयोजित होने के बाद ही लागू होगा। इसके अलावा, संशोधन अधिनियम लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए आरक्षण समाप्त हो जाएगा।
विधेयक के उद्देश्य और कारणों का विवरण 2047 तक विकसित भारत (विकासित भारत) के लक्ष्य को प्राप्त करने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है, जो देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं। विधेयक में महिलाओं की अधिक भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। उन्हें वास्तव में सशक्त बनाने के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया। माना जाता है कि महिलाओं का दृष्टिकोण विधायी बहस और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की गुणवत्ता को समृद्ध करता है।
विधेयक पेश होने के बाद लोकसभा स्थगित कर दी गई और आगे की चर्चा के लिए बुधवार को सुबह 11 बजे फिर से बैठक होगी। राजनीति में अधिक लैंगिक प्रतिनिधित्व की दिशा में इस कदम को भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में लैंगिक समानता और समावेशिता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है।