सुप्रीम कोर्ट ने 30 मई 2025 को एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि किसी वैध लीगल नोटिस के क्या आवश्यक तत्व होते हैं। यह टिप्पणी उस मामले में की गई जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (UPSIDC) द्वारा कमला नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट (KNMT) को 125 एकड़ औद्योगिक भूमि का आवंटन रद्द किया गया था। इस निर्णय में न्यायालय ने यह भी माना कि UPSIDC ने तीन वैध लीगल नोटिस जारी कर प्रक्रिया का अनुपालन किया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ कमला नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट बनाम उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड मामले की सुनवाई कर रही थी। विवाद का केंद्र यह था कि UPSIDC ने भूमि आवंटन रद्द करने से पहले अपनी मार्केटिंग एवं प्रबंधन नियमावली की धारा 3.04 (vii) के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया या नहीं, जिसमें तीन लीगल नोटिस दिए जाना अनिवार्य है।
मामला पृष्ठभूमि
KNMT को सितंबर 2003 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के उत्कलवा औद्योगिक क्षेत्र में 125 एकड़ भूमि फ्लोरीकल्चर परियोजना हेतु आवंटित की गई थी। ट्रस्ट द्वारा भुगतान समय पर न करने के कारण UPSIDC ने 15 जनवरी 2007 को आवंटन रद्द कर दिया। ट्रस्ट ने इस निर्णय को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने UPSIDC के फैसले को बरकरार रखा। इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की लीगल नोटिस पर टिप्पणी
KNMT की ओर से तर्क दिया गया कि UPSIDC ने केवल एक ही वैध लीगल नोटिस (13 नवंबर 2006) दिया, जबकि नियमावली के अनुसार तीन लगातार लीगल नोटिस देने अनिवार्य थे।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“‘लीगल नोटिस’ का तात्पर्य एक स्पष्ट और विधिक दायित्व के परिणामस्वरूप भेजी गई ऐसी सूचना से है, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लंघन की बात हो और कानूनी परिणामों का उल्लेख हो।”
सुप्रीम कोर्ट ने लीगल नोटिस के निम्नलिखित आवश्यक तत्व बताए:
- तथ्यों की स्पष्टता:
नोटिस में वे तथ्य होने चाहिए जो नोटिस भेजे जाने का आधार बनते हैं, या फिर पूर्व में किए गए पत्राचार का उल्लेख होना चाहिए। - उल्लंघन की सूचना:
उसमें उल्लंघन या बकाया भुगतान का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। - विधिक परिणाम की चेतावनी:
नोटिस में यह बताया जाना चाहिए कि यदि पालन नहीं हुआ तो कानूनी कार्यवाही की जाएगी। - स्पष्ट भाषा:
नोटिस की भाषा भ्रमरहित होनी चाहिए, और यदि यह किसी कानून या समझौते के अंतर्गत भेजा गया है तो उस प्रक्रिया का पालन करता हो।
कोर्ट ने UPSIDC द्वारा 14.12.2004, 14.12.2005 और 13.11.2006 को भेजे गए पत्रों को उपरोक्त मानकों के अनुरूप मानते हुए वैध लीगल नोटिस माना।
“सिर्फ इस आधार पर कि कुछ पत्रों को ‘लीगल नोटिस’ के रूप में शीर्षक नहीं दिया गया, KNMT को किसी प्रकार की वास्तविक क्षति नहीं हुई है,” कोर्ट ने कहा।
अंतिम निर्णय
कोर्ट ने कहा कि UPSIDC ने तीन वैध लीगल नोटिस देकर पूरी प्रक्रिया का अनुपालन किया। अतः आवंटन रद्द करना पूरी तरह वैधानिक था।
साथ ही कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि KNMT बार-बार भुगतान में चूक करता रहा और जानबूझकर समय सीमा से बचता रहा।
सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन पर निर्देश
हालांकि कोर्ट ने UPSIDC द्वारा KNMT को भूमि आवंटन रद्द करना सही ठहराया, लेकिन UPSIDC द्वारा उसी भूमि को मि. जगदीशपुर पेपर मिल्स लिमिटेड को बाद में दिया गया प्रस्ताव अवैध और सार्वजनिक नीति के विरुद्ध करार दिया गया।
इस पर कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- उत्तर प्रदेश सरकार और UPSIDC सुनिश्चित करें कि भविष्य में किसी भी औद्योगिक भूमि का आवंटन पारदर्शी, निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से हो।
- उक्त भूमि का पुनः आवंटन भी उपरोक्त प्रक्रिया के अनुसार ही किया जाए।