मोटर दुर्घटना मामलों में घायल व्यक्ति की मृत्यु होने पर भी कानूनी उत्तराधिकारी संपत्ति हानि के दावे कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 14 जुलाई 2025 को अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजा दावा, यदि घायल व्यक्ति की अपील लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो जाए, तो उसके कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा जारी रखा जा सकता है। न्यायालय ने मृतक दावेदार मीना के कानूनी उत्तराधिकारियों के पक्ष में कुल ₹12,53,770 मुआवजा देने का आदेश दिया, जो समान रूप से वितरित किया जाएगा।

मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला 4 जून 2005 को हुई एक सड़क दुर्घटना से उत्पन्न हुआ, जिसमें 50 वर्षीय मीना को गंभीर चोटें आईं, जिससे वह 100% दिव्यांग हो गईं। उन्होंने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष मुआवजा दावा दायर किया था। अधिकरण ने उनकी मासिक आय ₹3,000 मानकर, 13 का मल्टीप्लायर लगाकर ₹4,60,000 आय हानि के रूप में तय किए। इसके अतिरिक्त, ₹50,000 पीड़ा और दुःख के लिए, ₹1,20,000 परिचारक खर्च के लिए, ₹1,68,970 चिकित्सा खर्च के लिए, और ₹50,000 पोषण व परिवहन खर्च के लिए दिए गए, जिससे कुल मुआवजा ₹8,56,970 हुआ।

हाईकोर्ट ने इस मुआवजे में आंशिक बढ़ोतरी की, ₹50,000 और पीड़ा-दुःख के लिए तथा ₹1 लाख-₹1 लाख क्रमशः सुविधाओं की हानि और भविष्य की चिकित्सा के लिए प्रदान किए। अपील लंबित रहते हुए 25 जनवरी 2024 को मीना की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनके पति और दो बेटियां अपीलकर्ताओं के रूप में प्रतिस्थापित की गईं।

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पक्षकारों के तर्क:
अपीलकर्ताओं ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम कहलोन @ जस्मैल सिंह कहलोन [(2022) 13 SCC 494] के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजा ‘संपत्ति’ का व्यापक अर्थ रखता है और इसमें मृतक द्वारा छोड़ी गई संपत्ति शामिल होती है। कोर्ट ने उस मामले में कहा था, “यदि कानूनी उत्तराधिकारी मृत्यु के मामले में दावा कर सकते हैं, तो उनके लिए संपत्ति हानि के दावे को आगे बढ़ाने पर कोई रोक नहीं हो सकती, यदि घायल व्यक्ति की बाद में मृत्यु हो जाती है।” बीमा कंपनी ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

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न्यायालय का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चन्द्रन की पीठ ने माना कि मुआवजे का अधिकार मृतक की संपत्ति के रूप में कानूनी उत्तराधिकारियों को स्थानांतरित हो जाता है। कोर्ट ने देखा कि मीना द्वारा कढ़ाई और सिलाई के कार्य से आय का दावा किया गया था, लेकिन इस पर कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं हुआ, इसलिए अधिकरण द्वारा तय ₹3,000 मासिक आय को ही बरकरार रखा गया।

कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि मीना दुर्घटना के बाद लगभग 19 वर्ष शारीरिक असमर्थता की अवस्था में जीवित रहीं और इस दौरान चिकित्सा पर अतिरिक्त खर्च हुआ, हालांकि सभी खर्च दुर्घटना के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में नहीं गिने जा सकते। इसके बावजूद, कोर्ट ने भविष्य के इलाज के लिए अतिरिक्त ₹1 लाख मुआवजे में जोड़े।

अंतिम मुआवजा विवरण:

क्र.सं.मदराशि
1.चिकित्सा खर्च₹1,68,970
2.विशेष आहार व परिवहन खर्च₹50,000
3.पीड़ा और दुःख₹1,00,000
4.सुविधाओं की हानि₹1,00,000
5.भविष्य का इलाज₹2,00,000
6.परिचारक खर्च₹1,20,000
7.आय की हानि (₹3000 x 110% x 12 x13)₹5,14,800
कुल₹12,53,770

निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि पहले से दिए गए मुआवजे को घटाकर शेष राशि दो महीने के भीतर मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों को समान रूप से वितरित की जाए। बीमा कंपनी को आदेश दिया गया कि वह कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा प्रदान किए गए अलग-अलग खातों में ऑनलाइन राशि जमा करे, साथ ही वह ब्याज भी दे, जैसा अधिकरण द्वारा निर्देशित किया गया था।

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अपील को इन संशोधनों के साथ स्वीकृत किया गया और लंबित सभी याचिकाओं का निस्तारण कर दिया गया।

मामले का विवरण:

  • मामला शीर्षक: मीना (मृत) कानूनी उत्तराधिकारियों के माध्यम से बनाम प्रयागराज एवं अन्य
  • मामला संख्या: सिविल अपील संख्या … 2025 (@ एसएलपी (सिविल) संख्या 12187/2019)
  • पीठ: न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चन्द्रन

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