इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वकीलों पर हुए हमले और पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में देरी को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सैयद क़मर हसन रिज़वी की पीठ ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि राजधानी में वकीलों को पीटा जाता है, लेकिन उनके खिलाफ ही एफआईआर दर्ज कर दी जाती है, जबकि असली हमलावरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।
यह मामला क्रिमिनल रिट याचिका संख्या 1535/2025 के तहत दर्ज हुआ था, जिसे अमित कुमार पाठक और एक अन्य द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य प्रतिवादियों के खिलाफ दाखिल किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) के बाहर हुए एक हमले से जुड़ा है, जहां वकील अमित कुमार पाठक सहित याचिकाकर्ताओं पर फुटपाथ विक्रेताओं (स्ट्रीट वेंडर्स) ने कथित रूप से हमला कर दिया। इस हमले में अमित कुमार पाठक को गंभीर चोटें आईं, यहां तक कि उनकी खोपड़ी में घाव (स्कल पंचर) हो गया।
इसके बावजूद, पुलिस ने हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय सिर्फ याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज कर दी। याचिकाकर्ताओं ने बार-बार पुलिस अधिकारियों से न्याय की मांग की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः उन्हें हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
पुलिस की भूमिका पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए और कहा:
“यह एक गंभीर मामला है जहां राज्य की राजधानी में वकीलों पर हमला होता है, लेकिन पुलिस एफआईआर दर्ज करने में विफल रहती है। उल्टा, पीड़ितों के खिलाफ ही मामला दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।”
इसके अलावा, अदालत ने लखनऊ नगर निगम के नगर आयुक्त को निर्देश दिया कि वे इस संबंध में स्पष्ट जानकारी दें कि क्या SGPGI ट्रॉमा सेंटर के पास वृंदावन कॉलोनी क्रॉसिंग पर लगने वाले ठेलों (फुटपाथ बाजार) को कानूनी मंजूरी प्राप्त है। यदि कोई लाइसेंस जारी किए गए हैं, तो उनकी प्रतियां अगली सुनवाई में प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया।
कानूनी मुद्दे
इस मामले में मुख्य कानूनी मुद्दे निम्नलिखित हैं:
- एफआईआर दर्ज करने में देरी:
- याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि गंभीर चोटें लगने के बावजूद पुलिस ने उनकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं की, और उल्टा उनके खिलाफ ही मामला दर्ज कर दिया गया।
- पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही:
- अदालत ने सवाल उठाया कि SGPGI थाना प्रभारी (S.H.O.) और जांच अधिकारी (I.O.) ने एफआईआर दर्ज करने में देरी क्यों की, और इस मामले में उनकी भूमिका क्या थी?
- फुटपाथ बाजार की वैधता:
- मामले में यह भी सामने आया कि स्थानीय पुलिस अधिकारी अवैध रूप से स्ट्रीट मार्केट लगवाने में संलिप्त हैं और इसके बदले में अवैध वसूली करते हैं।
हाईकोर्ट के निर्देश और अगली सुनवाई
हाईकोर्ट ने निम्नलिखित आदेश पारित किए:
- नगर आयुक्त की रिपोर्ट:
- लखनऊ नगर निगम के आयुक्त को रिपोर्ट सौंपनी होगी कि क्या SGPGI के पास स्ट्रीट वेंडर्स को कोई आधिकारिक अनुमति प्राप्त है।
- पुलिस आयुक्त से जवाब:
- लखनऊ के पुलिस आयुक्त को विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें थाना प्रभारी (S.H.O.) और जांच अधिकारी (I.O.) की भूमिका स्पष्ट की जाए।
- वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की उपस्थिति:
- अगली सुनवाई में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को अदालत में उपस्थित रहकर पूरी जानकारी देनी होगी।
- जांच पर रोक:
- अगले आदेश तक जांच अधिकारी और अन्य पुलिस अधिकारी इस मामले में किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं कर सकेंगे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता गणेश कुमार गुप्ता ने पक्ष रखा, जबकि राज्य सरकार की ओर से सरकारी अधिवक्ता (G.A.) पेश हुए। नगर निगम की ओर से अधिवक्ता शैलेन्द्र सिंह चौहान भी अदालत में उपस्थित रहे।
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