केरल हाईकोर्ट ने अलप्पुझा जिले के थोट्टप्पल्ली स्पिलवे से रेत या मिट्टी निकालने के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए राज्य के मुख्य सचिव को एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा है कि बिना पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किए इस क्षेत्र में किसी भी तरह का खनन नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश नितिन जमदार और न्यायमूर्ति स्याम कुमार वी. एम. की पीठ ने स्पष्ट किया कि स्पिलवे या उससे जुड़े रेत-पट्टी क्षेत्रों से रेत हटाने की अनुमति तभी दी जाएगी, जब प्रस्तावित समिति से आवश्यक सुझाव और राय प्राप्त हो। समिति को खनन से जुड़े सभी पहलुओं का अध्ययन करने, दिशा-निर्देश तय करने और निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है।
अदालत ने निर्देश दिया कि दो महीने के भीतर इस समिति का गठन किया जाए। समिति की अध्यक्षता अलप्पुझा के जिला कलेक्टर करेंगे। इसमें सिंचाई या जल संसाधन विभाग, वन एवं वन्यजीव विभाग, केरल कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट अथॉरिटी के वरिष्ठ अधिकारी या विशेषज्ञ, पुरक्कड़ और थकाझी ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि तथा स्थानीय स्तर पर काम करने वाला कोई पर्यावरणीय एनजीओ शामिल होगा।
यह मामला ग्रीन रूट्स नेचर कंज़र्वेशन फोरम और अलप्पुझा निवासी अर्जुनन द्वारा दायर याचिकाओं पर सामने आया। याचिकाकर्ताओं ने जिला कलेक्टर के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कुट्टनाड क्षेत्र में हर साल आने वाली मानसूनी बाढ़ से निपटने के लिए स्पिलवे से रेत हटाने की अनुमति दी गई थी। प्रशासन का तर्क था कि पंपा, मणिमाला और अचन्कोविल नदियों का पानी बिना रुकावट बह सके, इसके लिए यह कदम जरूरी है।
याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि बाढ़ नियंत्रण के नाम पर वास्तव में खनिज-समृद्ध रेत का लगातार और अनियंत्रित दोहन किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि पिछले कुछ वर्षों में इस गतिविधि के चलते लगभग 15 एकड़ का एक संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र नष्ट हो चुका है। उनके अनुसार यह इलाका कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन अधिसूचना, 2011 के तहत संरक्षित कछुआ प्रजनन क्षेत्र है, जहां ओलिव रिडले और हॉक्सबिल कछुए अंडे देते हैं। ये दोनों प्रजातियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची-एक में शामिल हैं।
सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि बाढ़ नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिए स्पष्ट और प्रभावी व्यवस्था का अभाव है। पीठ ने जोर दिया कि खासकर ऐसे क्षेत्र में, जो केरल कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट अथॉरिटी के दायरे में आता हो, पर्यावरणीय असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि विभिन्न विभागों के अधिकारियों और विशेषज्ञों वाली समिति की निगरानी से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि थोट्टप्पल्ली स्पिलवे पर किए जाने वाले बाढ़-नियंत्रण उपाय एक सामान्य रेत खनन परियोजना में तब्दील न हो जाएं। इन निर्देशों के साथ हाईकोर्ट ने याचिकाओं का निपटारा कर दिया।

