केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक वकील को गलत तरीके से पुलिस स्टेशन बुलाने के लिए नजरक्कल पुलिस की कार्रवाई की कड़ी निंदा की। इस कदम को वकील अजीकुमार केके को डराने के प्रयास के रूप में देखा गया, जो उसी पुलिस इकाई द्वारा हिरासत में यातना का आरोप लगाने वाले ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
विवाद तब शुरू हुआ जब अजीकुमार ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 35(3) के तहत जारी नोटिस को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि इस प्रकार का नोटिस कानून के पेशेवरों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह धारा सामान्यतः उन लोगों के लिए है जिन पर मामूली अपराध का संदेह हो लेकिन गिरफ्तारी की आवश्यकता न हो।
न्यायमूर्ति काउसर एडप्पागथ ने मामले की सुनवाई करते हुए पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए और कहा कि वकील और पुलिस अधिकारी दोनों ही न्यायालय के अधिकारी होते हैं। उन्होंने पूछा, “जो वकील अपने मुवक्किल की पैरवी कर रहा है, उसे आप कैसे आरोपी बना सकते हैं?”

यह मामला उस शिकायत से जुड़ा है जो अजीकुमार ने एक दंपती की ओर से दायर की थी। उन पर बांग्लादेशी नागरिक होने और आधार कार्ड, वोटर आईडी जैसे जाली भारतीय दस्तावेज रखने का आरोप है। इस दंपती को 6 फरवरी 2025 से न्यायिक हिरासत में रखा गया है। गिरफ्तारी के बाद यह आरोप सामने आया कि पति को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित किया गया।
इस बीच, पुलिस ने पहले BNSS की धारा 94 के तहत वकील को दस्तावेज पेश करने के लिए नोटिस भेजा, जबकि ये दस्तावेज पहले ही मजिस्ट्रेट कोर्ट को सौंपे जा चुके थे। इसके बाद पुलिस ने खुद वकील को ही धारा 35(3) के तहत तलब कर लिया, जिसे अजीकुमार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
अदालत ने इस बात को गंभीरता से लिया और संकेत दिया कि भविष्य में वकीलों को इस प्रकार की कार्रवाइयों से बचाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जा सकते हैं। न्यायमूर्ति एडप्पागथ ने कहा, “मुवक्किल और वकील के बीच की सभी बातचीत गोपनीय होती है। वकील पर दबाव डालकर उसे उजागर करने का अधिकार पुलिस को नहीं है।”
इस मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च 2025 को होगी, जिसमें पुलिस की प्रक्रिया और नैतिकता पर सवालों की गहराई से समीक्षा की जाएगी।