केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) को जारी किए गए शो-कॉज नोटिस से जुड़ी आगे की कार्यवाही पर लगी रोक के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति सुष्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति पी. वी. बालकृष्णन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान KIIFB से सवाल किया कि उसने शो-कॉज नोटिस का जवाब देकर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के तहत सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कार्यवाही का इंतजार क्यों नहीं किया।
पीठ ने कहा,
“जब एक वैधानिक प्राधिकारी मौजूद है, तो हमें इन सभी पहलुओं की जांच क्यों करनी चाहिए? नोटिस का जवाब दाखिल करने और adjudicating authority के निर्णय का इंतजार करने में क्या समस्या थी? उन्होंने यह नहीं कहा है कि आपने कोई अपराध किया है। वे केवल यह पूछ रहे हैं कि आपके खिलाफ कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।”
साथ ही, अदालत ने ED से यह भी पूछा कि बिना किसी adjudication के शो-कॉज नोटिस के स्तर पर ही लगभग ₹466.91 करोड़ की राशि कैसे तय कर ली गई। पीठ ने इसे “पूर्व-निर्धारित” दृष्टिकोण बताया।
अदालत जिस राशि की ओर इशारा कर रही थी, वह FEMA प्रावधानों और RBI के मास्टर डायरेक्शन के कथित उल्लंघन से जुड़ी है, जिसका आरोप KIIFB और उसके अधिकारियों पर लगाया गया है।
ED की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ए. आर. एल. सुंदरसन ने स्पष्ट किया कि शो-कॉज नोटिस में किसी दंड राशि का निर्धारण नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि नोटिस केवल यह बताने के लिए जारी किया गया है कि लगभग ₹467 करोड़ के FEMA उल्लंघन के प्राथमिक आरोपों के आधार पर कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।
यह अपील ED ने अधिवक्ता जयशंकर वी. नायर के माध्यम से दायर की है, जिसमें 16 दिसंबर को पारित एकल न्यायाधीश के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत शो-कॉज नोटिस के आधार पर आगे की सभी कार्यवाहियों पर तीन महीने के लिए रोक लगा दी गई थी।
अपील में ED ने कहा है कि KIIFB की याचिका समय से पूर्व (premature) और विचारणीय नहीं थी, क्योंकि FEMA के तहत एक संपूर्ण adjudicatory और appellate ढांचा उपलब्ध है। एजेंसी के अनुसार, अधिकार क्षेत्र, तथ्यात्मक विवाद या RBI निर्देशों की व्याख्या से जुड़े सभी आपत्तियां adjudicating authority के समक्ष ही उठाई जानी चाहिए थीं।
ED ने अपनी याचिका में कहा,
“कानून और तथ्यों की पूरी तरह गलत सराहना के आधार पर एकल न्यायाधीश द्वारा अंतरिम आदेश पारित किया गया।”
एकल न्यायाधीश ने अंतरिम राहत देते हुए यह टिप्पणी की थी कि RBI का एक्सटर्नल कमर्शियल बॉरोइंग (ECB) फ्रेमवर्क, जो 16 जनवरी 2019 से लागू हुआ और KIIFB के मसाला बॉन्ड पर लागू था, उसमें ‘रियल एस्टेट गतिविधि’ की परिभाषा में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी गतिविधियां शामिल नहीं हैं।
इसके विपरीत, ED का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण एक रियल एस्टेट गतिविधि है और मसाला बॉन्ड से जुटाई गई राशि का उपयोग इसके लिए नहीं किया जा सकता। ASG सुंदरसन ने अदालत को बताया कि मसाला बॉन्ड फंड का उपयोग केवल उस भूमि पर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए किया जा सकता है, जो पहले से राज्य सरकार के स्वामित्व में हो, न कि नई भूमि खरीदने के लिए।
KIIFB की ओर से पेश वकील ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि adjudicating authority के समक्ष जाना बोर्ड के लिए एक “कठिन ordeal” होगा। उन्होंने दलील दी कि नोटिस का जवाब दाखिल कर निर्णय का इंतजार करने से बाजार में KIIFB की वित्तीय साख पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि ED द्वारा शिकायत दर्ज करना और शो-कॉज नोटिस जारी करना बिना किसी समुचित विचार के किया गया।
गौरतलब है कि ED ने नवंबर में KIIFB मसाला बॉन्ड मामले में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, पूर्व वित्त मंत्री थॉमस आइज़ैक और KIIFB के सीईओ के. एम. अब्राहम—जो मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव भी हैं—को लगभग ₹467 करोड़ के FEMA उल्लंघन का शो-कॉज नोटिस जारी किया था।
KIIFB राज्य सरकार की प्रमुख एजेंसी है, जो बड़े और महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के वित्तपोषण का काम करती है। वर्ष 2019 में, KIIFB ने अपने पहले मसाला बॉन्ड इश्यू के जरिए ₹2,150 करोड़ जुटाए थे, जो राज्य में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए ₹50,000 करोड़ जुटाने की उसकी योजना का हिस्सा था।

