केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को सबरीमला मंदिर की द्वारपालक (प्रवेश द्वार पर स्थित रक्षक देवता) मूर्तियों पर लगी सोने की परत वाले तांबे की पट्टियों के वजन में रहस्यमयी कमी पर गंभीर चिंता जताई और मामले की सतर्कता जांच के आदेश दिए।
न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन वी और न्यायमूर्ति के वी जयकुमार की खंडपीठ ने पाया कि 2019 में जब ये पट्टियां मंदिर से हटाई गई थीं तो उनका वजन 42.8 किलोग्राम दर्ज था। लेकिन जब उन्हें सोने की परत चढ़ाने के लिए चेन्नई स्थित कंपनी के पास पहुंचाया गया, तो उनका वजन केवल 38.258 किलोग्राम पाया गया। यानी 4.541 किलोग्राम की कमी।
पीठ ने कहा कि इस तरह की बड़ी कमी केवल सोने की परत में ही हो सकती है, जो गंभीर संदेह पैदा करती है। अदालत ने यह भी पाया कि पट्टियां मंदिर से हटाए जाने के 39 दिन बाद कंपनी को सौंपी गईं, जिसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।

न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि इस पूरी प्रक्रिया में उपस्थित देवस्वम बोर्ड के अधिकारियों ने वजन में आई इस गड़बड़ी की सूचना नहीं दी। और तो और, जब पट्टियां दोबारा मूर्तियों और पीठम (आसन) पर लगाई गईं, तो उनका वजन बिल्कुल दर्ज नहीं किया गया। अदालत ने कहा कि यह चूक “जानबूझकर की गई प्रतीत होती है” और “गंभीर प्रशासनिक लापरवाही की ओर संकेत करती है।”
कोर्ट ने इन गड़बड़ियों को “अत्यंत गंभीर” करार देते हुए कहा कि यह “लापरवाही और संभावित कदाचार का चिंताजनक पैटर्न” दर्शाती हैं। अदालत ने मुख्य सतर्कता एवं सुरक्षा अधिकारी (पुलिस अधीक्षक रैंक) को निर्देश दिया कि:
- वजन में आई रहस्यमयी कमी की जांच करें,
- 2019 में पट्टियां अपने पास लेने वाले प्रायोजक (Sponsor) की भूमिका व मंशा की जांच करें,
- और यह भी पता लगाएँ कि क्या मंदिर के स्ट्रॉन्ग रूम में द्वारपालक मूर्तियों और पीठम का दूसरा सेट सुरक्षित रखा गया है।
अदालत ने तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी और त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (TDB) को आदेश दिया कि वह पूरी तरह सहयोग करे, अन्यथा कठोर दृष्टि से देखा जाएगा।
यह मामला हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर शुरू किया था, जब यह सामने आया कि द्वारपालक मूर्तियों की सोने की परत चढ़ी पट्टियां बिना विशेष आयुक्त, सबरीमला को सूचित किए हटा दी गई थीं। पिछले सप्ताह ही अदालत ने देवस्वम बोर्ड को निर्देश दिया था कि चेन्नई से इन पट्टियों को वापस लाया जाए और बोर्ड को फटकार लगाई थी।