केरल के राज्यपाल और राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति आरिफ मोहम्मद खान को करारा झटका देते हुए केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एकल पीठ के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें केरल डिजिटल यूनिवर्सिटी और ए पी जे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्तियों को अवैध ठहराया गया था।
न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी. वी. बालकृष्णन की खंडपीठ ने राज्यपाल और अन्य द्वारा दाखिल की गई रिट अपीलों को खारिज कर दिया। ये अपील 19 मई 2025 के एकल न्यायाधीश के उस फैसले को चुनौती देती थीं जिसमें डॉ. सिज़ा थॉमस (केरल डिजिटल यूनिवर्सिटी) और डॉ. के. शिवप्रसाद (ए पी जे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी) की नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया था।
न्यायालय ने प्रक्रिया की अनदेखी पर जताई सख्त आपत्ति

कोर्ट ने पाया कि 27 नवंबर 2024 को जारी की गई नियुक्तियों में वैधानिक प्रक्रिया और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की 2018 की नियमावली का उल्लंघन किया गया। अदालत ने स्पष्ट किया कि अंतरिम नियुक्तियों के लिए भी राज्य सरकार द्वारा नामों के पैनल की सिफारिश आवश्यक है। राज्यपाल द्वारा एकतरफा की गई नियुक्तियां न केवल कानून के विपरीत थीं बल्कि विश्वविद्यालय अधिनियम और यूजीसी दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन थीं।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने दोहराया कि कुलपति की नियुक्ति एक स्वतंत्र, पारदर्शी और संस्थागत प्रक्रिया के माध्यम से ही होनी चाहिए, ताकि उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता और विश्वसनीयता बनी रहे।
“कुलपति विश्वविद्यालय की शैक्षणिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच सेतु होते हैं,” अदालत ने कहा। अदालत ने यह भी जोड़ा कि अंतरिम पदों पर भी अगर नियमों की अनदेखी की जाए तो यह संस्थागत संरचना को नुकसान पहुंचाता है।
तत्काल समाधान की आवश्यकता पर बल
कोर्ट ने दोनों विश्वविद्यालयों में चल रहे प्रशासनिक ठहराव पर चिंता जताई और कहा कि इसे शीघ्र हल किया जाना चाहिए। “वर्तमान गतिरोध और छात्रों पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए राज्यपाल और राज्य सरकार को मिलकर सक्रिय रूप से कार्य करना होगा, ताकि नियमित कुलपति की नियुक्ति बिना और विलंब के सुनिश्चित हो सके,” अदालत ने निर्देश दिया।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और राज्य की प्रतिक्रिया
यह फैसला उस समय आया है जब राज्य की सीपीआई(एम) नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार और राज्यपाल के बीच विश्वविद्यालय प्रशासन को लेकर लंबे समय से टकराव चल रहा है।
राज्य की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे सरकार की यह बात सिद्ध हो गई कि राज्यपाल ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया। उन्होंने इन नियुक्तियों को “अपमानजनक” और विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा को “नुकसान पहुंचाने वाला” बताया।
सामान्य शिक्षा और श्रम मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने भी इस निर्णय को राज्य सरकार की पारदर्शिता और कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्धता की जीत बताया।
UGC नियमों की प्रधानता स्पष्ट
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यूजीसी की 2018 की नियमावली, जिसमें कुलपति की शैक्षणिक योग्यता और नियुक्ति प्रक्रिया की रूपरेखा दी गई है, राज्य के कानूनों के किसी भी विरोधाभासी प्रावधान पर प्रभावी रहेगी। इससे यह संकेत मिलता है कि विश्वविद्यालय नियुक्तियों में केंद्रीय नियम सर्वोपरि होंगे।