कर्नाटक हाई कोर्ट में बुधवार को एक दिन के लिए कार्यवाही पूरी तरह ठप रही, जब वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा हाई कोर्ट के चार मौजूदा जजों के तबादले की सिफारिश के विरोध में कामकाज से दूरी बना ली। इस विरोध का नेतृत्व बेंगलुरु अधिवक्ता संघ (AAB) ने किया, जिसने मंगलवार को अपनी आम बैठक में सर्वसम्मति से तबादलों की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित किया।
जिन चार जजों के तबादले की सिफारिश की गई है, वे हैं: जस्टिस कृष्ण दीक्षित (ओडिशा हाई कोर्ट), जस्टिस के. नटराजन (केरल हाई कोर्ट), जस्टिस हेमंत चंदनगौड़र (मद्रास हाई कोर्ट), और जस्टिस संजय गौड़ा (गुजरात हाई कोर्ट)। कोलेजियम ने अपने निर्णय में कहा है कि यह तबादले “हाई कोर्ट स्तर पर समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देने तथा न्यायिक प्रशासन की गुणवत्ता को सुदृढ़ करने” के उद्देश्य से किए गए हैं।
हालांकि, AAB ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है और आरोप लगाया है कि कोलेजियम ने कर्नाटक की न्यायपालिका को अहम निर्णयों में नजरअंदाज किया है। बहिष्कार के बाद जारी एक बयान में संघ ने कहा, “यह निर्णय वकीलों में गहराते असंतोष और कर्नाटक की न्यायपालिका को बार-बार हाशिए पर डालने के खिलाफ उपजे गहरे आक्रोश को दर्शाता है।”

AAB ने कोलेजियम की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी को लेकर भी सवाल उठाए हैं और तबादला प्रक्रिया में अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग की है। संघ ने धारवाड़ और गुलबर्गा बेंचों की बार एसोसिएशनों से भी इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की है, ताकि “न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा” की जा सके।
यह पूर्ण बहिष्कार मंगलवार को किए गए प्रतीकात्मक एक घंटे के कार्यबहिष्कार के बाद हुआ है। कर्नाटक भर के अधिवक्ता संगठनों, जिनमें धारवाड़ बार के नेता भी शामिल हैं, ने पहले ही भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना को इस मुद्दे पर विरोध दर्ज करवा दिया है।
वकीलों ने प्रस्तावित तबादलों की समीक्षा की मांग करते हुए कहा है कि ऐसे निर्णय न केवल राज्य की न्यायपालिका के मनोबल को प्रभावित करते हैं, बल्कि न्याय प्रणाली पर आम जनता के विश्वास को भी कमजोर करते हैं।