धारा 391 CrPC  के तहत शक्ति केवल उन्हीं मामलों में प्रयोग योग्य जहां पक्षकार ने सभी प्रयासों के बावजूद साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य लेने की शक्ति केवल उन्हीं मामलों में प्रयुक्त की जा सकती है, जहां अपीलकर्ता यह साबित कर सके कि उसने उचित परिश्रम के बावजूद वह साक्ष्य पूर्ववर्ती न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सका।

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने यह टिप्पणी करते हुए श्री जे. रमेश द्वारा दायर आपराधिक याचिका संख्या 12045/2024 को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने सत्र न्यायालय द्वारा धारा 391 CrPC के अंतर्गत अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति न देने के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ चेक बाउंस मामले में धारा 138 निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 के अंतर्गत सजा सुनाई गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता जे. रमेश को 29 दिसंबर 2023 को ट्रायल कोर्ट ने एम/एस लक्ष्मी प्रेशियस ज्वेलरी प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए चेकों के अनादरण के आरोप में दोषी ठहराया था। उन्होंने इसके विरुद्ध आपराधिक अपील (Crl.A. No. 149/2024) दायर की।

ट्रायल के दौरान याचिकाकर्ता ने CrPC की धारा 91 के अंतर्गत वादिनी कंपनी के वित्तीय दस्तावेजों को बुलाने के लिए आवेदन किया था, जिसे 27 जून 2023 को खारिज कर दिया गया था। इस आदेश को चुनौती नहीं दी गई, जिससे यह अंतिम हो गया।

अपील लंबित रहने के दौरान, याचिकाकर्ता ने धारा 391 CrPC के तहत वही दस्तावेज पुनः मांगते हुए नया आवेदन दायर किया, जिसमें बैलेंस शीट, बैंक स्टेटमेंट और वैट रिटर्न शामिल थे। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ये दस्तावेज यह सिद्ध करने के लिए आवश्यक हैं कि उन्होंने कोई देनदारी स्वीकार नहीं की थी और उनके चेक का दुरुपयोग किया गया।

दलीलें और न्यायालय की टिप्पणियाँ

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि धारा 391 CrPC न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए अतिरिक्त साक्ष्य लेने की अनुमति देती है और यह अवसर न मिलने से गंभीर अन्याय हो सकता है।

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उत्तरदाता कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री संदेश जे. चौटा ने विरोध किया और कहा कि इस प्रकार की शक्ति केवल असाधारण मामलों में प्रयोग की जा सकती है और याचिकाकर्ता ने वही दस्तावेज प्राप्त करने के लिए एक बार पहले ही असफल प्रयास किया था। उन्होंने इसे कार्यवाही को विलंबित करने की एक चाल बताया।

न्यायालय ने जहीरा हबीबुल्ला एच. शेख बनाम गुजरात राज्य [(2004) 4 SCC 158] और अजीतसिंह चहूजी राठौड़ बनाम गुजरात राज्य [(2024) 4 SCC 453] सहित कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:

“धारा 391 CrPC के अंतर्गत अतिरिक्त साक्ष्य लेने की शक्ति केवल उन्हीं मामलों में प्रयोग की जा सकती है, जब पक्षकार यह सिद्ध कर सके कि उसने पर्याप्त परिश्रम करने के बावजूद ट्रायल कोर्ट में वह साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका।”

अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश को दोहराकर उसी राहत की पुनः मांग करना दुर्लभ या असाधारण श्रेणी में नहीं आता।

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निष्कर्ष

अदालत ने याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा:

“इस न्यायालय को यह निष्कर्ष निकालने में संकोच नहीं कि यह केवल कार्यवाही को लंबित रखने का एक बहाना है… याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत मामला असाधारण श्रेणी में नहीं आता।”

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि धारा 391 CrPC के तहत शक्ति का प्रयोग केवल उचित परिस्थिति में ही किया जाना चाहिए, अन्यथा यह न्याय प्रक्रिया की गंभीरता को प्रभावित कर सकता है।

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