कर्नाटक हाईकोर्ट ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में अधिवक्ता संघ, बेंगलुरु (एएबी) की गवर्निंग काउंसिल में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए जाति-आधारित कोटा शुरू करने की मांग करने वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया। यह फैसला न्यायमूर्ति आर. देवदास ने सुनाया, जिन्होंने याचिकाकर्ताओं को अपनी शिकायतें सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाने की सलाह दी।
ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज एडवोकेट्स फाउंडेशन और कर्नाटक एससी/एसटी बैकवर्ड क्लासेज एंड माइनॉरिटीज एडवोकेट्स फेडरेशन द्वारा दायर याचिकाओं में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा महिलाओं के लिए अनिवार्य 30 प्रतिशत के समान आरक्षण की मांग की गई थी। हालांकि, न्यायमूर्ति देवदास ने स्पष्ट किया कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्देश जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग किया था, जो एएबी के मौजूदा उप-नियमों के तहत जाति-आधारित आरक्षण पर लागू नहीं होता है।
जबकि हाईकोर्ट ने एएबी नेतृत्व की भूमिकाओं में एससी/एसटी या ओबीसी सदस्यों के ऐतिहासिक प्रतिनिधित्व की कमी को मान्यता दी, इसने कहा कि किसी भी न्यायिक निर्देश पर विचार करने से पहले उप-नियमों में संशोधन की आवश्यकता होगी। फैसले ने यह भी उजागर किया कि अधिवक्ता संघ में बार के सदस्य शामिल हैं और राज्य के वित्तपोषण से लाभ उठाते हैं, जो ऐसे पेशेवर निकायों के भीतर आरक्षण नीतियों को लागू करने की जटिल प्रकृति को रेखांकित करता है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि महिलाओं के लिए पदों को आरक्षित करने के एएबी के कदम ने सभी संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त हाशिए के समूहों को शामिल करने के लिए एक मिसाल कायम की है, जिसे ऊर्ध्वाधर (जाति-आधारित) और क्षैतिज (लिंग-आधारित) आरक्षण तक बढ़ाया जाना चाहिए। इन तर्कों के बावजूद, हाईकोर्ट ने इस मामले पर एएबी को निर्देश देने से परहेज किया, जिससे सुप्रीम कोर्ट में आगे की अपील के लिए दरवाजा खुला रह गया।