कर्नाटक हाईकोर्ट ने साइबर अपराधों पर लगाम लगाने के लिए साइबर कमांड सेंटर बनाने का दिया आदेश

कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य में तेजी से बढ़ रहे साइबर अपराधों पर गंभीर चिंता जताते हुए बुधवार को सरकार को एक पूर्ण रूप से कार्यशील और सक्षम साइबर कमांड सेंटर (CCC) स्थापित करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने स्पष्ट किया कि यह केंद्र राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए और इसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अधीन पर्याप्त कार्यकाल के साथ चलाया जाना चाहिए ताकि स्थिरता बनी रहे। अदालत ने कहा कि डीजीपी स्तर के अधिकारी का स्थानांतरण केवल “विशेष परिस्थितियों” में और पूर्व परामर्श के बाद ही होना चाहिए।

“यह कोई सिफारिश नहीं बल्कि अनिवार्यता है। यदि साइबर अपराधों से निपटने के लिए विशेष और सक्षम एजेंसी नहीं होगी, तो हजारों पीड़ितों के लिए न्याय केवल मृगतृष्णा रह जाएगा,” न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने टिप्पणी की।

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यह निर्देश बेंगलुरु स्थित रक्षा तकनीक कंपनी न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। कंपनी ने आरोप लगाया था कि उसके पूर्व कर्मचारी ने संवेदनशील डेटा चुराकर प्रतिद्वंद्वी कंपनी को दिया और उसका उपयोग रक्षा ठेके पाने में किया।

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अप्रैल में, अदालत ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय एसआईटी गठित की थी और साथ ही राज्य सरकार को साइबर कमांड सेंटर स्थापित करने पर विचार करने का सुझाव दिया था। बुधवार को एजी शशि किरण शेट्टी और विशेष लोक अभियोजक बी.एन. जगदीशा ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है और केंद्र स्थापित करने का आदेश जारी कर दिया है।

अदालत ने चेतावनी दी कि केवल संस्था का गठन करना पर्याप्त नहीं होगा।
“यदि यह निष्क्रिय रहा, तो बढ़ते साइबर अपराधों के सामने यह केवल कागजी कार्यवाही बनकर रह जाएगा। यह CCC महज़ नौकरशाही ढांचा नहीं, बल्कि एक पैराडाइम शिफ्ट होना चाहिए — साइबर अपराध के खिलाफ नई सुबह का शंखनाद,” न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा।

इसके साथ ही अदालत ने राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन 1930 को CCC की प्रणाली से जोड़ने का आदेश दिया और कहा कि हर कॉल और कार्रवाई “ट्रेसेबल और रिकॉर्डेड” होनी चाहिए। अदालत ने यह भी इंगित किया कि फिलहाल यह हेल्पलाइन कानूनी “ग्रे ज़ोन” में काम कर रही है, जहाँ अक्सर एफआईआर दर्ज किए बिना ही फंड फ्रीज़ या रिलीज़ कर दिए जाते हैं।

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अदालत ने चिंताजनक आंकड़े प्रस्तुत किए। वर्ष 2021 में जहाँ राज्य में 8,396 साइबर अपराध दर्ज हुए थे, वहीं 2025 में यह संख्या बढ़कर लगभग 30,000 तक पहुँच गई है। अदालत ने कहा, “सबसे चिंताजनक बात यह है कि अब अधिकांश मामले सामान्य पुलिस थानों में दर्ज और जांचे जा रहे हैं, जबकि उनके पास इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण और उपकरण उपलब्ध नहीं हैं।”

इसलिए अदालत ने निर्देश दिया कि सभी साइबर अपराध जांचों को CCC के अधीन एकीकृत किया जाए।

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राज्य सरकार को 24 सितंबर तक एक्शन टेकन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया गया है, जो अगली सुनवाई की तारीख होगी।

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