क्यो महत्वपूर्ण है क़ानून व्यवस्था एवं अन्वेषण शाखा को अलग करने का फैसला

पुलिस  व्यवस्था और पुलिस दोनों राज्य के विषय है और यह भारतीय संविधान की 7 वीं अनुसूची की सूचि – II की प्रविष्टि 1 और 2 में है। 

ऐसे में  विभिन्न पुलिस सुधारों को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों/केन्द्रशासित प्रदेशों पर है। इसीलिए देश में सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के अपने – अपने पुलिस बल है। 

राज्य पुलिस पर कानून व्यवस्था एवं अपराधों की जांच करने की जिम्मेदारी होती है, जबकि केंद्रीय बल ख़ुफ़िया और आन्तरिक सुरक्षा से जुड़े विषयों में उनकी सहायता करते है।

Video thumbnail

माननीय उच्चतम न्यायलय एवं उच्च न्यायालय द्वारा समय समय पर पुलिस  सुधारो के लिए दिए गये दिशा निर्देश की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। 

Read Also

 पुलिस सुधारों से जुडी धर्मवीर समिति की सिफारिशों को लागू करवाने के  लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व डी.जी.पी. प्रकाश सिंह ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस अपील पर 2006 में फैसला आया और सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधारों को लेकर व्यापक गाइडलाइन्स देते हुए सभी राज्यों में इन्हें लागू करने का आदेश दिया था। 

READ ALSO  कोई व्यक्ति इस आधार पर पीएमएलए की धारा 50 के तहत ईडी द्वारा जारी समन से नहीं बच सकता कि भविष्य में उसकी गिरफ्तारी की संभावना है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

जिनमे कुछ इस प्रकार है –

1-    स्टेट सिक्यूरिटी कमिशन का गठन किया जाये ताकि पुलिस बिना किसी दबाव के काम कर सके।

2-     पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी बनाई जाए, जो पुलिस के खिलाफ आने वाली वाली गंभीर शिकायतों की जांच कर सके।

3-    थाना प्रभारी से लेकर पुलिस प्रमुख तक की एक स्थान पर कार्यावधि २ वर्ष सुनिश्चित की जाए।

4-    अपराध की विवेचना और कानून व्यवस्था के लिए अलग – अलग पुलिस की व्यवस्था की जाये।

लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति के आभाव में आदेश को किसी न किसी कारण से लागू करने में तत्परता नही दिखाई गई। लेकिन अब जब राज्य सरकार ने ये शुरुआत की है तो इस कदम का स्वागत होना चाहिए।

देखीए क़ानून को गति में लाने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है पुलिस या सम्बंधित व्यवस्था की जानकारी में उस घटना को लाना। जिसकी शुरुआत होती है शिकायती पत्र से अर्थात सूचना से | 

READ ALSO  पशु तस्करी मामले में पूछताछ के लिए टीएमसी नेता को दिल्ली ले जाने के सीबीआई कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका

प्रथम सूचना रिपोर्ट/ FIR के लिए यह आवश्यक है कि सूचना में अंकित तथ्यों से संज्ञेय अपराध निर्मित होता हो। संज्ञेय अपराध की सूचना पर थाना प्रभारी धारा 154 (1) सी. आर.पी.सी. के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत करने के लिए बाध्य है। इसके अतिरिक्त उसके पास अन्य कोई विकल्प नही है। विवेचना पूर्ण रूप से पुलिस का अबाधित अधिकार है। इसके लिए यह आवश्यक है कि वह CRPC के अध्याय 12 में दी गई विधिक प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए विवेचना करे।

अब जब अलग से विवेचना/ अन्वेषण शाखा अस्तित्व में आ जाएगी तो जो अधिकारी इस शाखा में होंगे उनपर कानून व्यवस्था सँभालने का अतिरिक्त भार नही होगा। जिसका लाभ न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के रूप में मिलेगा।   

एक अच्छा कदम है

काफी लम्बे समय से पुलिस  सुधारों की जो मांग लंबित चली आ रही थी उस पर राज्य सरकारों की तरफ से अब सकारात्मक शुरुआत होने लगी है। पिछले दिनों पुलिस द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले हथियारों में बदलाव हुए है वही अब उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से भी पुलिस  सुधारों को लेकर बड़ा कदम उठाया गया है। जिसके तहत राज्य सरकार ने पुलिस व्यवस्था में कानून व्यवस्था और अन्वेषण शाखा को अलग कर दिया है। जिससे आपराधिक मामलो के निस्तारण में काफी सुधार आयेगा।

READ ALSO  न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने सुप्रीम कोर्ट को अलविदा कहा

थानों पर अन्वेषण की शाखा अलग कर दिए जाने से अब उन्हें केवल अपराधों के अन्वेषण से सम्बन्धित काम ही देखने होंगे एवं कानून व्यवस्था से सम्बंधित कार्य अलग शाखा देखेगी। इससे जल्दी विवेचना कर चार्जशीट न्यायालय में प्रस्तुत करने व ट्रायल के दौरान पेश किये जाने वाले साक्ष्य/गवाह व्यवस्था में भी सुधार आना तय है । 

क्यूंकि कई बार अलग अलग सरकारी कार्यक्रम में व्यस्तता के कारण कई बार पुलिस उन कार्यक्रमों की व्यवस्था में व्यस्तता के कारण उनके लिए ये संभव नही हो पाता था कि गवाहों को या अभियुक्त को समय पर न्यायालय में उपस्थित किया जा सके। जिस कारण से गंभीर अपराधो के ट्रायल वर्षो तक लटके रहते है। अब क़ानून व्यवस्था शाखा एव अन्वेषण शाखा अलग कर देने से सकारात्मक असर दिखेगा।


रोहित श्रीवास्तव, 
एडवोकेट

Views are Personal

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles